वुजूद
शिफाली चौधरी ‘चंचल’
नाम क्या है, कुछ नहीं,
मक़ाम क्या है, सब यही।
उलझ रहा है हर तरफ़,
सवाल क्या है, कुछ नहीं।
वो रुका तो क्यों रुका,
जो चल दिया तो सब सही।
अब रास्ते ही मंज़िलें,
थकान क्या है कुछ नहीं।
हाँ बात हो तो बात हो,
ना बात हो तो क्या सही।
तुम्हीं करो सब फ़ैसला,
मेरा जवाब कुछ नहीं?
रोना हुआ तो हँस दिया,
क्यों हँस रहा पूछा नहीं।
कोई दोस्ती या कहानी,
ज़िंदा नहीं तो कुछ नहीं।
ये लगाव कैसा लगाव है,
जिसका सारा हिसाब है।
एक तख़्त है, टूटा हुआ,
एक नींद है, हारी हुई।
गर जग रहा तो हौसला,
जो सो गया तो कुछ नहीं।
ये ज़िन्दगी, जो कमाल है,
सवाल-जवाब-सवाल है।
जो सबकी मान ले सही,
तू क्या बचा, कुछ नहीं।
जो मौत है वो जीत है,
एक मौन सा संगीत है।
वो ख़ुद से आए, गान है,
तू ख़ुद गया तो कुछ नहीं॥
2 टिप्पणियाँ
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आमतौर पर मैं कविताएँ नहीं पढ़ता। क्योंकि आजकल बहुत उत्साही कवि हैं और वे कविता शब्द को ही नष्ट कर देते हैं। लेकिन यह लिखी गई सबसे अच्छी कविता है, यह अर्थपूर्ण है; इसमें प्रवाह है; हिंदी साहित्य में योगदान करने के लिए मिस शेफाली चौधरी को बहुत-बहुत धन्यवाद
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बहुत सुंदर रचना