वृक्ष की करुण गाथा
डॉ. दिनेश जाधवहै वृक्ष की ये करुण गाथा
तुमको मैं सुनाता हूँ,
कटने से इसके पृथ्वी पर पड़े
प्रभाव को समझाता हूँ।
वृक्ष-वृक्ष से मिलकर
हरा भरा वन बनता है,
इन्हें देखकर काले बादलों
का डेरा वहाँ थमता है।
वन देखकर काली बदरा
खूब बरसती है,
तेज़ पानी में मिट्टी बह न जाए
इसलिए जड़ें मिट्टी कसके सहजती हैं।
गर्मी में तीव्र हवा
खुली मिट्टी को उड़ा ले जाती है,
वृक्ष की जड़ों से गर बँधी रहे
तो बची रह जाती है।
जंगल देते हैं आश्रय और खाना
पशु पक्षियों को,
रोटी कपड़ा और मकान
देते हैं मनुष्यों को।
मनुष्य का अस्तित्व ही
टिका है वनों पर,
प्राणवायु का उत्पादन
निर्भर है वनों पर।
मरकर भी वृक्ष मनुष्य के
काम आता है,
ईंधन, लकड़ी, चारा, खाद ये
हमें दे जाता है।
कारखानों से निकली विषैली गैसें,
वृक्ष ले लेता है,
बदले में हमें ये प्राणवायु
ही देता है।
धूल, शोर, गर्मी, अन्य प्रदूषणों
को आसानी से सह लेता है,
फिर भी करते रहें अपना कर्म
ये सीख हमें देता है।
बारिश, तूफ़ान, आँधी, झंझावात
कितने ही ये सहता है,
फिर भी जीवन संग्राम में रहें डटे
ये हमें कहता है।
उद्योगों, बांधों, भवनों, पूलों, रेलों, खेतों
की ख़ातिर कट रहे हैं वन,
अभाव में इनके ये पृथ्वी
ज़हरीली रही है बन।
एक समय आएगा ऐसा
जब वृक्ष इतिहास हो जाएगा,
कभी होते थे वृक्ष ऐसे
शिक्षक शिष्यों को ये बताएगा।
फिर बारिश न होगी
क्यूँकि वृक्ष न होंगे,
बादल फिर कभी न बरसेंगे
क्यूँकि वे कहीं न ठहरेंगे।
वातावरण में नमी न रहेगी
गर्मी 50 से 55 डिग्री बढ़ेगी,
दिन में जितनी गर्मी रहेगी
रात में शीत उतनी बढ़ेगी।
मिट्टी उड़ती रहेगी और
रेगिस्तान बढ़ता जाएगा,
बचा पानी जलाशयों में
उबलता जाएगा।
और हम खड़े-खड़े देखते
रह जाएँगे,
पानी की इक बूँद
धरती फाड़े भी न पाएँगे।
बिन पानी अन्न न होगा,
और पहले की तरह तन न होगा,
विषैली गैसें वातावरण में
ज़हर घोलती जाएँगी।
नई पीढ़ियाँ अनुवांशिक
रोगों का घर कहलाएँगी,
गर्मी से तटों की बर्फ़ पिघलेगी
इधर गर्मी कई ज़िंदगिया निगलेगी।
बर्फ़ का पानी समुद्रों के रास्ते
तटीय देशों को डुबोएगा,
और धीरे-धीरे इस धरा पर
इंसान लापता हो जाएगा।
गर कहानी में हो सच्चाई
दाद देना मेरे भाई,
एक वृक्ष तुम भी लगाना
और दूसरे को गुण बताना।
संकल्प ले लो हर वर्ष
तुम एक वृक्ष लगाओगे,
आने वाली संतानों को
प्राणवायु दे जाओगे।
जंगलों की रक्षा करो
अपनी संतान मानकर,
ये तुम्हारी पीढ़ियों की
करेंगे सेवा भगवान मानकर।
1 टिप्पणियाँ
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विज्ञान और साहित्य दोनो को एक कर दिया जाधव सर आपने