विवाह—जहाँ ‘मैं’ विलीन होकर ‘हम’ जन्म लेता है
कृति आरके जैन
विवाह—अधूरी नहीं, एक-दूसरे में पूरी कहानियाँ
विवाह—प्रेम का अनसुना स्वर, जो समय भी नहीं सुन पाता
विवाह—एक ऐसा बँधन जो दो दिलों को नहीं, दो आत्माओं को जोड़ देता है। यह केवल मिलने की औपचारिकता नहीं, बल्कि जीवन भर साथ निभाने की पवित्र प्रतिज्ञा है। यह रिश्ता “साथ रहने” से नहीं, बल्कि हर परिस्थिति में “साथ निभाने” से जीवित रहता है। इसमें प्रेम की मिठास है, पर साथ ही धैर्य, त्याग और अटूट विश्वास का वह मौन संकल्प भी है, जो हर कठिनाई, हर आँधी के बाद इस बँधन को और मज़बूत बना देता है।
शुरूआत में हर विवाह एक सुंदर सपने जैसा लगता है—जहाँ हर दिन नई रोशनी लेकर आता है, हर बात में मिठास होती है, और हर नज़र में प्रेम की चमक। छोटी-छोटी ख़ुशियाँ बड़ी लगती हैं, और जीवन एक रंगीन उत्सव-सा प्रतीत होता है। पर असली विवाह वहीं से शुरू होता है, जहाँ यह रंग धीरे-धीरे यथार्थ में ढलने लगते हैं—जब थकान, ज़िम्मेदारियाँ और मतभेद दरवाज़ा खटखटाते हैं। तभी समझ आता है कि प्रेम केवल रोमांस का नाम नहीं, बल्कि धैर्य, समझ और स्वीकार से बुनी वह डोर है जो दो अलग जीवनों को एक सूत्र में बाँध देती है। असली साथ वही होता है, जहाँ तकरार के बाद भी दिलों में अपनापन ज़िन्दा रहता है।
पति-पत्नी का रिश्ता एक पारदर्शी आईने जैसा होता है—जिसमें दोनों एक-दूसरे का सच्चा रूप देखते हैं। जब पत्नी अपनी थकान छिपाकर मुस्कुराती है ताकि पति की चिंता हल्की हो जाए, तो वह स्नेह नहीं, त्याग का सबसे सुंदर रूप बन जाती है। और जब पति अपनी उलझनों को मन में दबाकर बस इतना कह देता है—“सब ठीक हो जाएगा, ” तो वह केवल शब्द नहीं, बल्कि वह विश्वास होता है जो पूरे घर को सँभाल लेता है। यही तो प्रेम का सबसे पवित्र रूप है—जो बोलता नहीं, बस हर नज़र, हर स्पर्श, हर ख़ामोशी में गहराई से महसूस होता है।
वो दृश्य कितना ख़ूबसूरत होता है—जब देर रात तक पत्नी पति की प्रतीक्षा करती है, और सुबह वही पति बिना कुछ कहे उसके लिए चाय बनाकर रख देता है। वहाँ शब्द नहीं होते, पर हर क्रिया में एक गहरा स्नेह छिपा होता है। दोनों जानते हैं—ज़िंदगी आसान नहीं, मगर एक-दूसरे का साथ ही उनकी सबसे बड़ी ताक़त है। यही तो उस रिश्ते की सुंदरता है—जहाँ मौन ही भाषा बन जाता है, और आँखों की कोमल चमक ही दिलों की अनकही बात कह देती है।
समय के साथ यह बँधन बदलता ज़रूर है, पर इसकी जड़ें और गहरी होती जाती हैं। पहले जहाँ प्रेम में चंचलता थी, अब उसमें स्थिरता है; पहले जहाँ रोमांस था, अब उसमें गहराई और समझ की परतें हैं। जो हाथ कभी केवल स्नेह से थामा गया था, अब वही हाथ हर कठिनाई में सहारा बन चुका है। और जब कभी जीवन की आँधियाँ दोनों को झकझोरती हैं, तब यही रिश्ता सिखाता है—प्यार जीतने की नहीं, समझने की कला है। जब रात की ख़ामोशी में कोई हल्की सी “सॉरी” फुसफुसा देता है, और दूसरा बिना कुछ कहे बस मुस्कुरा देता है—वहीं से शुरू होता है सच्चे विवाह का नया सवेरा।
सालों की लंबी यात्रा के बाद पति-पत्नी एक-दूसरे के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाते हैं—इतने गहराई से कि अब उनके सुख-दुःख, थकान और सुकून की सीमाएँ मिट जाती हैं। एक की मुस्कान दूसरे के दिन को रोशन कर देती है, और एक की चुप्पी दूसरे के दिल को बेचैन कर जाती है। अब प्रेम का स्वरूप बदल जाता है—वह शब्दों या इज़हार में नहीं, बल्कि रोज़मर्रा के छोटे-छोटे व्यवहारों में झलकता है। अब साथ टहलने की चाह नहीं रहती, बस साथ बैठने की ख़ामोश तसल्ली ही जीवन का सबसे बड़ा सुकून बन जाती है। दो कप चाय, एक पुरानी खिड़की, और साझा ख़ामोशी—यही अब उनके संसार की सबसे गहरी ख़ुशी है।
और फिर जब उम्र अपनी धीमी चाल से उतरने लगती है, जब बालों में सफ़ेदी झिलमिलाने लगती है, तब भी वो हाथ एक-दूसरे में वैसे ही थमे रहते हैं—जैसे बरसों पहले थामे गए थे। आँखें भले अब कमज़ोर पड़ गई हों, पर उनमें आज भी वही पुरानी चमक, वही अपनापन झिलमिलाता है। वे एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं—मानो समय से कह रहे हों, “तेरी रफ़्तार चाहे जितनी भी तेज़ हो, हमारे साथ की धड़कनें आज भी उतनी ही मज़बूत हैं।” यही है विवाह की सच्ची परिपूर्णता—जहाँ प्रेम का रंग समय के साथ बदलता है, पर उसकी गहराई नहीं।
विवाह का असली सौंदर्य उसकी चमकदार परिपूर्णता में नहीं, बल्कि उन हल्की-हल्की खरोंचों में छिपा है जो जीवन की परीक्षाओं ने दी हैं—क्योंकि हर चोट, हर चुनौती, इस रिश्ते को और गहराई से गढ़ती है। यह रिश्ता वादों की मिठास पर नहीं, बल्कि समर्पण के मौन कर्मों पर टिका होता है। हर सुबह की एक मुस्कान, हर दिन की छोटी-सी परवाह, हर रात की थकान के बाद का एक सुकूनभरा “ठीक हो न?”—यही वे पल हैं, जिनमें यह बँधन बार-बार जन्म लेता है, और पहले से कहीं अधिक मज़बूत हो उठता है।
अंततः, पति-पत्नी दो अलग अस्तित्व नहीं, बल्कि एक ही आत्मा के दो रूप हैं—जो जीवन की हर धूप में एक-दूसरे के साए बनते हैं, और हर छाँव में एक-दूसरे का आसरा। वे कभी शब्दों से नहीं, बल्कि मौन स्पर्शों से प्रेम जताते हैं; कभी तर्क से नहीं, बल्कि एहसास से साथ निभाते हैं। जब एक थक जाता है, दूसरा हिम्मत बनता है; जब एक टूटता है, दूसरा संबल। यही तो उस रिश्ते की गहराई है—जहाँ प्रेम कोई भावना नहीं, बल्कि जीवन जीने का ढंग बन जाता है। वे हर दिन, हर साँस, हर धड़कन के साथ यह सिखाते हैं—सच्चा प्रेम बोला नहीं जाता, निभाया जाता है। वह किसी वचन या वाक्य में नहीं बंधता, बल्कि हर मुस्कान, हर आँसू, और हर साझा ख़ामोशी में बसता है। और यही तो विवाह का चिरस्थायी सौंदर्य है—जहाँ दो नहीं, एक आत्मा चलती है—समर्पण के पथ पर, अनंत प्रेम की रोशनी में।