विषादधारा
आकांक्षा बोहरापाषाणखंडों सा खंडित
चट्टानों पर आरोहित
बड़वानल सा विकराल
विषाद मानव हृदय का
मात देता काल तृषा को।
कुंठा और शंका की व्यथा,
उपेक्षा उपेक्षितों से,
रुग्ण जीवन का चिर क्रंदन,
ज्यों जग घनघोर निशा हो।
भ्रमित जीव भ्रमित प्राण
सृष्टि का रूप विकराल
करुण आस औ’ करुण विलाप
सर्प कुंडली सा यह मोहजाल
निःशब्द वचन, निःश्वास कर्म
क्या कोई अर्थ या छिपा मर्म
क्यों मानव पीड़ित होता है
अपनी ही दी हुई वेदना से।