विडम्बना

06-11-2016

विडम्बना

अच्युत शुक्ल

पार्टी दफ़्तर में मीटिंग चल रही थी। मुद्दा था - आने वाले चुनावों में अच्छे से अच्छा प्रदर्शन करना। सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया की कल एक लंबा रोड मार्च निकाल जायेगा, एक जगह कैंप लगेगा, वहीं पर एक भंडारे का आयोजन भी किया जायेगा और लोगों को पार्टी की उपलब्धियों और लक्ष्यों से अवगत कराया जायेगा।

अगले दिन पार्टी कार्यकर्ता पार्टी के झंडे हाथ में लिए और कुछ स्वदेशप्रेमी तिरंगे को लिए दुपहिया पर बैठकर ज़िंदाबाद! ज़िंदाबाद! के नारे लगाते हुए चले जा रहे थे। वो अलग बात थी कि ज़िले की आबोहवा को महसूस करने के लिए उनके सर पर हेलमेट न था। दुपहिया, चौपहिया बनी थी। पुलिसिया अफ़सर मौन खड़े थे, क्योंकि प्रतिरोध करने पर उनकी धुनाई या बर्ख़ास्तगी भी हो सकती थी।

थोड़ी ही देर में वे सब आयोजन स्थल पहुँचे।

पार्टी के जिला संयोजक मंच पर से ऊँची आवाज़ में बोले- "हमारी पार्टी आदर्शों और उसूलों को मानने वाली पार्टी है। हम ज़िले में नियम क़ानून स्थापित करेंगे, गुंडाराज मिटायेंगे, ग़रीबी और भ्रष्टाचार यहाँ पैर भी नहीं पसारेंगे। हम शहर में स्वच्छता लायेंगे। आप बस अपना अमूल्य मत देकर पार्टी को विजयी बनायें।"

तत्पश्चात भंडारे का आयोजन किया गया। पार्टी कार्यकर्ताओं ने बड़ी ज़ोर-शोर से खाद्य सामग्री वितरित की। सब पार्टी की प्रशंसा कर रहे थे।

शाम होते-होते सभी पार्टी कार्यकर्ता एक-एक करके अपने अपने घरों को रवाना हो चुके थे। आयोजन स्थल सूना सा पड़ा था। बस दस-बीस तिरंगे इधर-उधर बिखरे थे, जो दोना-पत्तलों की बाढ़ के कारण धूल-धूसरित हो चुके थे। कुछ ही दूरी पर तीन-चार बच्चे पीठ पर बोरी लटकाये बड़ी तन्मयता से प्लास्टिक के गिलास बीने जा रहे थे। आवारा कुत्ते उनपर भौंक रहे थे।

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