वेदना
पाराशर गौड़वेदना मन की मैं
तुमसे कहती रही
उसको सुन सको
तुम्हें इतनी फ़ुरसत नहीं
मौन को तोड़ के
कुछ कहो तो सही
घावों में लगा दे मरहम
जो वो बात वो बात
तुम में है ही नहीं...।
बात मेरी तुमने
हँसियों में छोड़ दी
चलते चलते उसमें
एक और बात जोड़ दी
जोड़ तोड़ छोड़ की
भूमिकाओं में
तुम्हारे संग चलते चलते
पीछे रह गई
पीछे मुड़के देखा तो साथ
साया भी नहीं .. घावों...।
तुमने जो भरी आह
सुनके मैं तो डर गई
तुमको इतनी भी
खबर नहीं कि मैं
मैं टूटते टूटते टूट गई
मैं तो अपनी सीमाओं में
बंध के रह गई
तुम किसी सीमा को
लाँघ के आ सको
तुम में इतना
हौसला भी नहीं.. घावों...।
किश्तों में बँट के
रह गई निगोड़ी ज़िन्दगी
कगार की आग में
झुलस के रह गई बंदगी
अरमान पिस गये
सिलवटों के बीच
सरेआम हो गई
निलाम आज सादगी
सच्च तो दब के
रह गया झूठ के तले
सच को सुन सको तुम
तुम में इतना
हौसला भी नहीं.. घावों..॥
बेमानी हो गये
हैं रिश्ते अब
रिश्तों में दरारें आ गई
जिन राहों पे चले थे हम
उनमें मोड़ आ गये थे कई
बिखर गये वो टूटकर
काँच की तरह
सोचती हूँ वो टूटे
तो टूटे क्यों बेवजह
बैठकर सोचो तो
प्रश्नों की कमी नहीं.. घावों...।
यूँ तो मैंने अपनी ओर से
शुरूआत की कई
देखिये नसीब अपना
ज़िन्दगी फँस के रह गई
थोड़ी मैं चली थी
थोड़ा तुम चलते सही
बीच के फ़ासले
सिमट के आते वहीं
अनजान तुम बने रहे
हाल मेरा वही
बढ़ते गये फ़ासले
धुँध छाती गई
जोड़ दे जो
हम तुम को वो बात
वो बात अब तो
दीखती नहीं .. घावों..।