तुम्हारी मुस्कान
इला प्रसादतुम मुस्कुरा दो
तो मन पर छाया कोहरा
हट जाए।...
वरना बादल घिरते रहे हैं लगातार
जाने कब से
संशय के
अस्वीकृति के
और उससे उपजी
उदासी के!
तुम्हारी मुस्कान
इस सबके बीच
घिरे अंधियारे आसमान में
दामिनी की द्युति सी,
अंधेरे कमरे में
दीपक की लौ सी
चमकती है,
झरती है धार धार
बारिश की बूँदों सी
और मन,
नहा धोकर
स्वच्छ हो आता है!..