तुम प्रिये
अभिजीत आनंद ’काविश’भोर की लाली किरण सी तुम प्रिये,
मुस्काते कुमुद की पहली झलक सी तुम प्रिये,
मन ही मन बस निहारता रहूँ मैं . . .
ओस की बूँदों में नहाई मंजुल छवि सी तुम प्रिये,
सुबह की अधखिली अलसाई कलि सी तुम प्रिये,
मन ही मन बस बहकता रहूँ मैं . . .
मेरी बगिया की चहकती मधुर कलरव सी तुम प्रिये,
मन उपवन में बरसती सावन फुहार सी तुम प्रिये,
मन ही मन भीगकर आह्लादित होता रहूँ मैं . . .
मेरे हिय में पुलकित कोंपल सी तुम प्रिये,
मेरे नयनन में समाई प्रेम मूरत सी तुम प्रिये,
मन ही मन बस सँवारता रहूँ मैं . . .
मेरी लेखनी से स्फुटित हर शब्द में सिर्फ़ तुम प्रिये,
मेरे गीत ग़ज़लों में रची बसी सिर्फ़ तुम प्रिये,
मन ही मन बस गुनगुनाता रहूँ मैं . . .
तुम्हीं प्रेरणा, तुम अभिव्यक्ति मेरा हर उद्गार तुम प्रिये,
मन मंदिर में बस गई हो निर्मल मूरत सी तुम प्रिये,
मन ही मन तुम्हें पूजता रहूँ मैं . . .