तूफ़ान के बाद
अमित कुमार चौबे
मुझे याद है शहर उन दिनों भयावहता के सागर में
गोते लगा रहा था . . .
गलियों में बेख़ौफ़ मौत घूमती थी . . .
हवाओं में एक ऐसी गंध थी कि
इंसानियत बेसुध पड़ी-पड़ी अपनी अंतिम साँसें ले रही थी,
वह कितना कितना भयावह था? तुम्हें याद होगा
लेकिन उस भयावह वक़्त में भी मैंने तुम्हें
कितना प्रेम किया था . . .
बारूदों और गोलियों की आवाज़ों के बीच
तुम्हारी आवाज़ मुझे मधुर संगीत लगती थी . . .
जब ख़ौफ़नाक मंज़र से और रक्त के छींटों से
वह स्ट्रीट लाइट नहाई हुई थी . . .
ऐसे समय में तुम मेरे ज़ेहन की परतों पर लिपटी
शान्ति का प्रतीक थी . . .
उस स्ट्रीट लाइट ने हमारी कितनों रातों का साथ देखा
घंटों प्रेम की बातों की गवाह बनी . . .
गुलाबी मौसम में सफ़ेद चादर की जगह
रक्त से सने पिघलते बर्फ़ के पानी ने . . .
कितने घरों को विस्थापन का चोला पहना दिया . . .
आज मेरे शहर की स्ट्रीट लाइट ने तुम्हें याद किया है . . .
तुम लौट आओ जैसे लौट आती शहर की स्ट्रीट लाइट की रोशनी
एक तूफ़ान के बाद . . .