तस्वीर बना दे कोई
पल्लवीमेरी ग़ज़लों की भी
तस्वीर बना दे कोई,
लफ्ज़-ब-लफ्ज़ ये
रंगों से सजा दे कोई
मैंने जज़्बात को
फूलों से हैं अल्फ़ाज़ दिए,
दिल के गुलदान में
सलीक़े से लगा दे कोई
मैंने ख़ामोश निगाहों से
है सब कह डाला,
अब मुकर जाने की
तरक़ीब बता दे कोई
मेरी तहरीर में आ जाये
बला की रौनक़,
मुझको तालीम दे,
फ़नकार बना दे कोई
मुझको मौहलत न मिली
सोचने समझने की,
यूँ गया जैसे परिंदों
को उड़ा दे कोई
मेरी पेशानी पे लकीरें सी
उभर आयी हैं,
इन्हें मासूमियत से
छू के मिटा दे कोई