स्त्रियाँ
गोविन्दा पाण्डेय ‘प्रियांशु’स्त्रियाँ कभी रिटायर नहीं होतीं
हर उम्र में अपनी उपयोगिता सिद्ध करती हैं
उनके हाथों में इतना हुनर
और कार्यों में इतनी विविधताएँ हैं
कि समय को अपने अनुसार ढाल लेती हैं
हर परिस्थिति में निपुणता से ढल जाती हैं . . .
वे घर सँभाल लें
महरी को निर्देश दे दें
अपने बच्चों की परवरिश के बाद
उनके बच्चों की देखभाल कर लें
अपरिचित जगह को परिचित बना लें
अज्ञात जगह में व्यवस्थाएँ कर लें
मान्यताओं को ध्वस्त कर दें
स्वयं को विभिन्न आयामों में परिभाषित कर दें
हर उधड़न पर तुरपाई कर दें
हर दुविधा पर बटन टाँक दें . . .
वहीं अधिकतर पुरुष नौकरी से निवृत्ति को
समाज से निवृत्ति समझ लेते हैं
मन ख़ाली ख़ाली
समय अनुपयोगी . . .
कदाचित पुरुष पैसे कमाने को ही ज़िन्दगी समझते हैं
स्त्रियाँ पैसे कमाएँ या न कमाएँ
वे ज़िन्दगी कमाना जानती हैं . . .