स्त्री विमर्श के प्रत्येक पहलू को छूता कहानी संग्रह: रवानगी

15-01-2025

स्त्री विमर्श के प्रत्येक पहलू को छूता कहानी संग्रह: रवानगी

सुनीता मिश्रा (अंक: 269, जनवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

समीक्षित पुस्तक: रवानगी (कहानी संग्रह) 
लेखिका: निशा भास्कर 
प्रकाशक: किताबघर प्रकाशन २४ अंसारी रोड, दरयागंज, न्यू दिल्ली
मूल्य: ₹165.00
पृष्ठ संख्या: 104
ISBN: 978-9389663655
एमाज़ॉन.इन पर उपलब्ध लिंक: रवानगी

रवानगी कहानी संग्रह की लेखिका निशा भास्कर जी, दिल्ली शिक्षा निदेशालय में अध्यापन, तथा विगत 21 वर्षों के लेखन कार्य में सक्रिय हैं। रवानगी कहानी संग्रह में उनकी 11 कहानियाँ संगृहीत है अपनी कहानियों के सम्बन्ध में वे लिखतीं हैं, “कहानियों को लिखते समय प्रत्येक पात्र को मैंने अपनी धड़कनों में महसूस किया है, पात्रों के साथ मेरे मन के तार जुड़े हैं इन कहानियों में चित्रित पात्रों के साथ मेरी भावनाओं को अभिव्यक्ति मिली और साथ मिली जीवन में सार्थकता।” 

कथा संग्रह ‘रवानगी’ की कहानियाँ भावनाओं के समंदर से लबरेज़, मन का विश्लेषण करती हैं। यथार्थ की धरती पर उतर, कल्पना और हृदय में पनपते कोमल भावों को कहीं फलते-फूलते, कहीं टूटते तारे-सा, इतना सहज-सजीव चित्रण क़लम की कूची से कोरे काग़ज़ों पर शब्द-रंगों से भरतीं हैं कि कहानी जीवंत हो उठती है। 

रवानगी, प्रेम पर आधारित यह कहानी, मानो प्रेम पर लिखा आख्यान हो। ढाई आखर का प्रेम बहुत विस्तृत है, इसे शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता। नदी की धार सा उज्जवल और पवित्र होता है प्रेम। विडंबना यह कि समाज ने इसे कभी मान्यता दी ही नहीं। हर युग में प्रताड़ित हुआ है। मन की अतल गहराइयों को छूती है प्रेम-गाथा ‘रवानगी’। 

कभी-कभी, मन की उद्विग्नता का कारण मन भी नहीं जानता, आकाश में उड़ती कल्पनाओं को पकड़ ही नहीं पाता, इतना नादान मन, ख़ुद ही नहीं समझ पाता उसे क्या पाना, क्या खोना, क्या नाकरना है, अपने ख़्यालों, सपनों में डूबता, उतराता जब थक जाता तो आँसुओं का झरना बन बहने लगता है। एक लड़की जो प्यार करती है किसी के, पर उससे ज़ाहिर नहीं करती, बिना उसके जी नहीं सकती मर भी नहीं सकती। अजब, ग़ज़ब द्वन्द्व झेलता है उसका मन, क्या होगा इस अंतर्मन के द्वन्द्व का अंत, बताएगी कहानी—‘तहरीरें’।

शिकायतें, सकारात्मक हों, निखर कर सामने आएँ ऐसा हो ही नहीं सकता! लेकिन यह कर दिखाया कहानी ‘शिकायत’ ने। शिकायत को शिकस्त दे दी विश्वास ने। 45 डिग्री के तापमान में, एक मुरझाये, मृतप्राय नन्हे से पौधे को ज़िन्दगी मिली, किसी के सेवा—अनुराग से। 

नगीना वह स्त्री का नाम जो विपरीत परिस्थितियों में कभी झुकी नहीं, पति से प्रताड़ित होकर भी सदा उसका साथ दिया, आत्मबल, संयम, स्वालंबन, संस्कार की पूँजी लिए जीवन-रण में योद्धा की तरह लड़ती रही, अपने कुल का सम्मान बनाये रखने के लिए। सही मायने में ‘कुलवधू’ थी नगीना। 

नारी विमर्श पर सुदृढ़ कहानी। 

हर स्त्री का सपना होता है उसका घर, वह घर जो उसका अपना होता है चाहें वह पुराना जर्ज़र छोटा-सा ही क्यों न हो। आहत होती है वह, जब उस घर में ही आश्रय पाकर भी कोई उस घर का उपहास करे। बुरा लगता है उसे। आपातकाल में पुराने बरगद जैसे उस घर ने कितने मेहमान-परिंदों को पनाह दी। भावनाओं से भरी हुई कहानी ‘नीड़’। 

बच्चे कितने भी बड़े हो जाएँ, माँ के लिए हमेशा छोटे ही रहते हैं। वह बच्चों के लिए हर वक़्त चिंतातुर रहती है, पर बच्चे माँ के प्यार को कब समझ पाते हैं, और जब तक समझ पाते हैं बहुत देर हो जाती है। मन के तार झनझनाती कहानी ‘पश्चाताप’। 

‘वरौ शम्भो नतौ’—विवाह पूर्व प्रेम और जातिवाद आज भी समाज में अस्वीकार हैं। हालाँकि परिवर्तन आया है लेकिन अंश मात्र। कुछ ऐसी ही समस्या से जूझती है कहानी ‘वरौ शंभो’। प्रेमी युगल पर पूरे परिवार का असहयोग, घर का वातावरण बोझिल, अप्रिय होना, इस समस्या का निदान कैसे हो? समाधान ढूँढ़ती पठनीय कहानी। 

‘आस’ कहानी गाँव का कथानक, प्रेम में पगा जेठानी, देवरानी का बहनों-सा प्रेम, गाँव की समस्याओं से जूझते जीवन के उतार-चढ़ाव, और अंत—यह जीवन है जीवन का यही है रंग रूप, लेखिका की क़लम ने सच कर दिया कि दुःख बाँटने से घटता और सुख बाँटने से बढ़ता है। किसान परिवार के धैर्य और सामंजस्य की मधुर कहानी। 

‘रॉन्ग नम्बर’, स्त्री, ज़िन्दगी दो हिस्सों में जीती है पहिला मायका फिर ससुराल। दोनों में बहुत अंतर। माँ का घर, जहाँ उसने सुखमय समय बिताया, प्यार-लाड़ में पली, वही विवाह के बाद एकदम पराया हो जाता है। किस तरह से उस घर से उसका वुजूद ख़त्म करने की साज़िश, उसके सगे भाई द्वारा की जाती है। मार्मिक कहानी। 

बचपन के दिन, माँ का प्यार, बाबा का दुलार, भाई भाभी का स्नेह, स्कूल, कॉलेज, शहर की गलियाँ, सड़कें, दुकानें, सहेलियों के साथ के ठहाके, कविता गीत-ग़ज़ल लिखना, सुनना-सुनाना और . . . और भी बहुत सारी बातें, यादों का भंडार, ब्याही हुई बेटियाँ अपने मायके आने पर कभी नहीं भूलतीं। इसी विषय वस्तु के सहारे खड़ी है मीठी सी कहानी ‘अभिव्यक्ति’।

निशा भास्कर की लगभग सभी कहानियाँ, स्त्री विमर्श के प्रत्येक पहलू को छू रही हैं। कहानी के शिल्प, संवेदनाओं के मोती पिरोये हुए हैं। हर कहानी अपने अस्तित्व के साथ कस कर बुनी गई है, जो पाठकों को प्रभावित करने में सक्षम है। 

शुभकामनाएँ हैं निशा भास्कर जी को, उनकी क़लम इसी तरह कहानियों को विस्तार देती हुई अनवरत चलती रहे। 

सुनीता मिश्रा 
भोपाल

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