शुक्रिया
मोहम्मद जहाँगीर ’जहान’मैंने दर्द सारे जी लिये
सुकूं न मुझको मिल सके
वक़्त का तक़ाज़ा आ गया
ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया
गुल भी अब तो ख़ार हैं
न रौनक़ें न बहार हैं
चमन भी देखो उजड़ गया
ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया
जहाँ कूकती थीं कोयलें
जहाँ बजती तेरी पायलें
वो बाग़ सारा कट गया
ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया
चुभन से छलनी पाँव है
नहीं शफ़क़तों की छाँव है
वो साया सर से उठ गया
ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया
शामें लंबी हो गयीं
घड़ी की साँसें थम गयीं
हर-सू अँधेरा छा गया
ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया
'जहान' यह कैसी रीत है
न अंत तक कोई मीत है
रगे-जां था जो चला गया
ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया।