शुक्रिया

15-11-2021

शुक्रिया

मोहम्मद जहाँगीर ’जहान’ (अंक: 193, नवम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मैंने दर्द सारे जी लिये 
सुकूं न मुझको मिल सके 
वक़्त का तक़ाज़ा आ गया 
ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया 
 
गुल भी अब तो ख़ार हैं 
न रौनक़ें न बहार हैं 
चमन भी देखो उजड़ गया 
ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया 
 
जहाँ कूकती थीं कोयलें 
जहाँ बजती तेरी पायलें
वो बाग़ सारा कट गया 
ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया 
 
चुभन से छलनी पाँव है
नहीं शफ़क़तों की छाँव है 
वो साया सर से उठ गया 
ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया 
 
शामें लंबी हो गयीं
घड़ी की साँसें थम गयीं 
हर-सू अँधेरा छा गया 
ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया
 
'जहान' यह कैसी रीत है 
न अंत तक कोई मीत है 
रगे-जां था जो चला गया 
ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया। 

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