शीतांशु भारद्वाज का उपन्यास साहित्य

15-02-2023

शीतांशु भारद्वाज का उपन्यास साहित्य

डॉ. बंदना चंद (अंक: 223, फरवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

हिन्दी साहित्य के साठोत्तरी कथाकारों में शीतांशु भारद्वाज का महत्त्वपूर्ण स्थान है। शीतांशु भारद्वाज ने कुल 11 उपन्यास हिंदी साहित्य को प्रदान किये। उनके उपन्यासों का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा हैः

1. एक और अनेक (1978)

यह उपन्यास मुख्य रूप से शिक्षित बेरोज़गारी की समस्या पर आधारित है। समाज का पढ़ा-लिखा युवा वर्ग निरंतर हताशा एवं कुंठा से ग्रसित हो रहा है, जिसका प्रमुख कारण रोज़गार न मिलना है। उपन्यास का मुख्य पात्र प्रयाग है। उसे और उसके संगी-साथियों कुंथा, प्रमिला, मृणाल, दीप्ति रावत, मिस जाफरी, सुधाकर आदि को पीएच.डी. की उपाधि मिलती है। प्रयाग को इस उपाधि मिलने पर कोई प्रसन्नता नहीं होती है; क्योंकि समस्या बेरोज़गारी की है। इस उपन्यास में राजनीतिक दबाव एवं गुंडागर्दी का भी चित्रण हुआ है। बेरोज़गारी इस क़द्र बढ़ जाती है कि लोग डरा-धमका कर नौकरी पा लेते हैं। शिक्षित बेरोज़गारों से किसी को कोई हमदर्दी नहीं रहती है। इस उपन्यास में समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार का चित्रण हुआ है। शिक्षण संस्थानों में नौकरी के लिए रिश्वत दी जाती है। अपनी योग्यतानुसार रोज़गार न मिलने से युवा वर्ग को असंतुष्टि का सामना करना पड़ता है। इस उपन्यास के पात्र अपने-अपने जीवन में निराशा के कारण सही दिशा नहीं तलाश पाते हैं। 

2. डॉ. आनंद (1979)

सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित इस उपन्यास में भी शीतांशु भारद्वाज ने अनेक समस्याओं का चित्रण किया है। इस उपन्यास का प्रमुख पात्र डॉ. आनंद है। पीएच.डी. करने के बाद भी वह रोज़गार की तलाश में भटकता है और अनेक संघर्षों से जूझता है, किन्तु कहीं भी उसे स्थायित्व नहीं मिलता है। इस उपन्यास में लेखन की दुनिया की सच्चाई को उजागर किया गया है। लेखन के नाम पर किसी दूसरे की रचना को अपने नाम से प्रकाशित कर देते हैं। डॉ. आनंद हमारे समाज के बेरोज़गार, प्रयत्नशील युवा का प्रतिनिधित्व करता है। एक ऐसा युवा जिसका शोषण समजा द्वारा हर जगह होता है। इस उपन्यास में शिक्षा के नाम पर चल रहे शिक्षण संस्थानों की वास्तविकता उजागर हुई है। लेखकों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का चित्रण भी इस उपन्यास में हुआ है। इस उपन्यास में आंचलिक जीवन का भी चित्रण दिखाई देता है। वहाँ के वातावरण, रहन-सहन, वेशभूषा, उत्सव आदि का चित्रण है। इस उपन्यास में नारी जीवन की पीड़ा और उन पर होने वाले अत्याचारों, शोषण का मार्मिक चित्रण किया है, “मनीश की आँखों में लाल डोरे उतर आते हैं। बिस्तर से उछलकर वह अनिता के पास आ खड़ा होता है। उसकी आँखों में हिक़ारत उतर आती है। तड़ाक से वह अनिता के गाल पर एक थप्पड़ जड़ देता है।”1

3. दो बीघा ज़मीन

यह एक आंचलिक उपन्यास है। इस उपन्यास की मुख्य नायिका गोपुली है। उसका विवाह हुड़किया परिवार में होता है। हुड़किया लोग उस समय ठाकुरों के उत्सवों में नाच-गाकर अपना जीवनयापन करते थे। गोपुली को यह सब अच्छा नहीं लगता, किन्तु विवश होकर वह भी अपने परिवार का साथ देती है। इस उपन्यास में गोपुली ऐसी नारी के रूप में चित्रित हुई है, जो अपने साहस और परिश्रम से अपने परिवार की स्थिति को सुधार देती है और वर्षों से चली आ रही परंपरा को तोड़ देती है। इस उपन्यास में ठाकुरों द्वारा दलित वर्ग के शोषण का चित्रण हुआ है, “शिल्पकारों का वह जातीय उगाल जिस जोश के साथ उठा था उसी गति से बैठ भी गया। उन्हें भय था कि कहीं सांप्रदायिक झगड़ा न हो जाए, ठाकुर लोग कहीं चुन-चुनकर सभी शिल्पकारों को ठिकाने न लगाने लगें।”2 पुलिस द्वारा निर्बलों पर होते अत्याचारों एवं नारी शोषण का चित्रण इस उपन्यास में है। गोपुली अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए पटवारी धर्मदत्त की नाक काट देती है। उसे जेल हो जाती है। जेल में भी वह जेलर के अत्याचारों से पीड़ित होती है। अपने साहस और परिश्रम से वह सरकार द्वारा दी गई ज़मीन को आबाद कर अपने परिवार के साथ स्वतंत्र जीवन जीने लगती है। 

4. एक और सीता (1987)

यह उपन्यास नारी यातना पर आधारित है। इसमें नायिका जया और नायक शरद की असफल प्रेम गाथा का चित्रण हुआ है। इसमें नारी पात्रों में जया के अलावा द्रोपती, विजया, नंदा आदि हैं। इन सभी को जीवन में अनेक यातनाएँ झेलनी पड़ती हैं। यही इस उपन्यास में चित्रित है। द्रोपती एक ऐसी नारी पात्र है जिसका पति उस पर अनेक अत्याचार करता है और मरने के बाद भी अपने परिवार को क़र्ज़ के बोझ तले दबा जाता है। नंदा ऐसी नारी चरित्र है जो अपने मृत पिता के क़र्ज़ को उतारने के लिए अपने सपने त्याग देती है और अधेड़ उम्र के आदमी से विवाह कर लेती है। विजया जया की जुड़वाँ बहन है, वह भी शरद से प्रेम करती हे, किन्तु अपनी बहन के लिए अपने प्रेम का बलिदान कर देती है। जया काविवाह जब धरणीधर से तय होता है, तब वह आत्महत्या करने का प्रयास करती है, किन्तु अपने परिवार की ख़ातिर नहीं कर पाती है। यह उपन्यास नारी के त्याग, प्रेम, शोषण को चित्रित करता है। 

5. फिर वही बेखुदी (1990)

यह एक आंचलिक उपन्यास है तथा इसका कथानक कुमाऊँ अंचल के रामनगर (भिकियासैण) गाँव से संबंधित है। इस उपन्यास की नायिका देवा एक ऐसी ग्रामीण युवती है जो अपने जीवन में अनेक संघर्ष करती है। देवा निम्नवर्गीय नारी का प्रतिनिधित्व करती है। वह अपने जीवन की हरकठिनाई को साहस के साथ पार करती है। देवा के माध्यम से नारी मन की अनेक आशा, अभिलाषा, निराशा का चित्रण इस उपन्यास में अत्यंत गहराई से किया गया है, “उस घर को छोड़ लेने से पूर्व देवा ने उसे बंद कर लेना ठीक नहीं समझा। उसका वहाँ था ही क्या! राह चतली हुई वह मुड़-मुड़कर पीछे छूटे हुए घर को देखती रही। घर जिसको आज तक अपनाए रही, जो उसके लिए एक दबड़ा भर ही रह गया था।”3 इस उपन्यास में ग्रामीण एवं नगरीय जीवन की समस्याओं को चित्रित किया गया है। आंचलिक वर्णन में विभिन्न रीति-रिवाज़ों, त्यौहारों का भी चित्रण इस उपन्यास में है। 

6. मोड़ काटती नदी (1996)

इस उपन्यास में चाँदनी नामक युवती के माध्यम से उपन्यासकार ने नारी जीवन के विविध संघर्षों को चित्रित किया है। नायिका चाँदनी को जीवन में अनेक मोड़ों से गुज़रना पड़ता है। कई लोगों से उसका सामना होता है, जो कि उसका शोषण करते हैं। फिर भी वह अपनी परिस्थितियों का सासह के साथ सामना रकती है। इस उपन्यास में पुनर्विवाह की समस्या का चित्रण हुआ है। महानगरों में बढ़ते अपराध एवं क़ानून व्यवस्था को भी इस उपन्यास में उजागर किया गया है। 

7. नुमाइंदे (1996)

यह उपन्यास सामाजिक, पारिवारिक एवं राजनीतिक जीवन से संबद्ध है। इसका नायक सचिन मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित है। इस उपन्यास में निम्न वर्ग पर उच्च वर्ग द्वारा शोषण को चित्रित किया गया है। सचिन शोषक वर्ग के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता है और शोषितों को अपने अधिकारों के लिए जागरूक करता है। इस कारण उसे अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ता है। इस उपन्यास में महानगरीय वातावरण का यथार्थ अंकन किया गया है। क़स्बाई वातावरण की समस्याओं का चित्रण इस उपन्यास में हे। पुनर्विवाह, विधवा विवाह की समस्या के साथ-साथ नारी समस्या का चित्रण इस उपन्यास में है। 

8. दूर का आईना (1998)

यह उपन्यास एक ऐसी ग्रामीण युवती के जीवन की कथा है जो जीवन भर संघर्ष करती है। उसकी दबंग प्रवृत्ति ही उसे काई पर फिसलने से बचाती है। उपन्यास की नायिका मालती अपने जीवन की हर कठिनाइयों को पार करती है। इस उपन्यास में ग्रामीण एवं शहरी जीवन के साथ पलायन की समस्या, बेरोज़गारी की समस्या तथा झोपड़पट्टी के अभाग्रस्त जीवन का चित्रण किया गया है। फ़ुटपाथी लोगों का वर्णन करते हुए लेखक कहता है, “फुटपाथियों की भी एक दुनिया हुआ करती है। उनकी संस्कृति में कहीं भी कोई दिखावा नहीं होता। ज़्यादा सोच-विचारों से भी वे परे ही रहते हैं।”4

9. लौटते हुए (1998)

इस उपन्यास में नारी चरित्रों के माध्यम से उपन्यासकार ने नारी जीवन की व्यथा को उजागर किया है। इस उपन्यास की प्रमुख नायिका शुचि है, किन्तु अन्य नारी पात्रों में पूनम, मिस भादुड़ी आदि ने अपनी भूमिकाओं द्वारा नारी शोषण का चित्रण किया है। विवाह की समस्या, दहेज़ की समस्या और बेरोज़गारी की समस्या को भी इस उपन्यास में उजागर किया गया है। अकेलापन, हताशा, निराशा से पीड़ित युवा वर्ग आत्मघाती क़दम उठाने को किस प्रकार मजबूर हो जाता है। इसका चित्रण इस उपन्यास में मिलता है। नारी के अनेक संघर्ष, उसकी विभिन्न मनःस्थितियों का अत्यंत गहराई से चित्रण किया है, “उस अनदेखे भविष्य के प्रति शुचि के अंदर कहीं खटका हो आया था। पति के सुरक्षित भविष्य के तले उवे अपना स्वयं का भविष्य असुरक्षित लगने लगा था। उसके माथे पर बोझ ही नहीं परकीया करने के स्पष्ट लक्षण अंकित थे। ऐसे में वह उसके पति को क्या सुरक्षा दे पाएगी।”5

10. सीखचों के पार (2008)

यह उपन्यास सामाजिक, पारिवारिक एवं राजनीति से जुड़ा है। इस उपन्यास में एक ऐसे युवक गौरव की कथा है जो कि सामाजिक कारणों से गब्बर नामक अपराधी बन जाता है। इस उपन्यास में मध्मयमवर्गीय जीवन की कठिनाइयों का यथार्थ चित्रण किया गया है। धन के अभाव में गौरव अपनी पुत्रियों का विवाह नहीं कर पाता। अंततः वह गबन के आरोप में जेल चले जाता है। जेल से छूटने पर समाज में हर कोई उसे अपमानित करता है। इस कारण वह पुनः अपराध जगत में प्रेवश करता है। इस उपन्यास में समाज में फैली विभिन्न कुरीतियों को दर्शाया गया है। भ्रष्टाचार और रिश्वतख़ोरी की समस्या को उजागर किया गया है। 

11. शंहशाह-ए-तहबाजारी (2011)

यह उपन्यास मुख्यतः राजनीतिक जीवन का चित्रण करता है। उपन्यास की कथावस्तु ग्रामीण एवं शहरी राजनीति से संबंधित है। इस उपन्यास में नए राज्य उत्तरांचल की अलग राज्य बनने के समय की राजनीतिक दशा का चित्रण हुआ है। इस उपन्यास में फ़ुटपाथी जीवन की समस्याओं, उन पर होने वाले अत्याचारों का चित्रण है। आंचलिक जीवन के चित्रण के साथ वहाँ की राजनीतिक जागरूकता को भी इस उपन्यास में उजागर किया गया है। विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की वास्तविकता का चित्रण इस उपन्यास में किया गया है। 

अतः स्पष्ट है कि कथाकार शीतांशु भारद्वाज ने हिंदी कथा साहित्य को कुल 11 उपन्यास प्रदान किए। उनके उपन्यासों की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वे उपन्यासों में पात्रों के संवादों के माध्यम से ही संपूर्ण कथाक्रम को गतिशील बनाते हुए दिखाई देते हैं। प्रमुखतया इनके उपन्यास आज़ादी के बाद के भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों का चित्रण करते हैं। वे अपने उपन्यासों में जहाँ एक ओर भारतीय नारी की विविध समस्याओं का निरूपण करते हैं, वहीं दूसरी ओर भारत के युवाओं की शिक्षित बेरोज़गारी की समस्या का निरूपण करना भी नहीं भूलते हैं। 

संदर्भ-

  1. डॉ. आनंद, शीतांशु भारद्वाज, तक्षशिला प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 130
  2. दो बीघा ज़मीन, शीतांशु भारद्वाज, दिनमान प्रकाशन, पृ. 14
  3. फिर वही बेखुदी, शीतांशु भारद्वाज, तक्षशिला प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 95
  4. दूर का आईना, शीतांशु भारद्वाज, साहित्य सहकार, दिल्ली, पृ. 28
  5. लौटते हुए, शीतांशु भारद्वाज, साहित्य सहकार, दिल्ली, पृ. 118

—डॉ. बंदना चंद, 
हिंदी विभाग, 
स्वामी विवेकानंद राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, लोहाघाट 
जिलाः चंपावत (उत्तराखंड)-262524

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