शहर में जो भी मिला
डॉ. सुधा ओम ढींगराशहर में जो भी मिला उसका इक क़ाफ़िला निकला,
मगर उस तन्हा शख़्स का बड़ा हौसला निकला।
जहाँ ग़ुबार उठ रहा था साँझ की ग़र्द का
क़रीब जा कर जाना वहाँ क़ाफ़िला निकला।
जिसे मैं समझती रही क़िस्मत की सज़ा
आज देखा तो वह उसका फ़ैसला निकला।
तेज़तर वक़्त की हवाओं के बावजूद
पता एक जो न गिरा उसका हौसला निकला।
चलते रहे साथ-साथ राह-ए-मंज़िल पर ’सुधा’
जब जाना तो वही दूर का फ़ासला निकला।