सावन गीत - 02

01-09-2023

सावन गीत - 02

कंचन वर्मा (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

गए परदेश पिया, खोया खोया रहे जिया। 
समझे विरह नहीं, बैरन फुहार है। 
 
झूले कैसे मोहे भाए, कौन मुझको झुलाए। 
राग सारे पड़े सूने, कैसा ये मल्हार है। 
 
सिंगार न सुहाता है, कुछ न अब भाता है। 
बिना उन बिन मेरा, सूना ये संसार है। 
 
कोई न ख़बर आए, सखी मुझे समझाये। 
कैसे मैं मनाऊँ भला, तीज का त्योहार है।

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