सावित्री
वन्दना दवेचुपचाप
यमराज के पीछे चल दी
और
सत्यवान को छुड़ा लाई
दायित्वबोध / न कोई जयघोष
सावित्री फिर से अपने
काम में लग गई
पति/ बच्चों को देखना
घर सँभालना
यही उसकी थी दिनचर्या
वो खाँसती थी/ घुटनों के दर्द से परेशान थी
ऐसे ही अनेक दर्द पाले
वो काम करती जा रही थी
बच्चे अपने काम में लगे थे/ पति अपने में
एक दिन वो
बीमारी से लाचार
बिस्तर से उठ न सकी
सत्यवान हो गया परेशान
सावित्री के माथे पर हाथ फेरकर
किया उद्घोष
मैं तुम्हें कुछ होने नहीं दूँगा
सावित्री ने पति की आँखों में
अपने लिए चिंता देखी
और उसकी आँखों में चमक आ गई
अब वो अपनी बीमारियों को भूल
पुनः काम में लग गई . . .