संस्कृति का कोरोनाकरण
जय प्रकाश नारायणसमझ सूनी, कल्पना वीरान।
मास्क चढ़े चेहरे और दबी ज़ुबान।
देखो शिक्षण अब खो रहा
अपनी चिर-परिचित मुस्कान।
क्या वायरस आज बदल रहा
नूतन संस्कृति का ध्यान?
संस्कारों की मजबूरी
बदल रही संस्कृति की धुरी।
प्रियतम से दो गज़ दूरी
कर रही तृष्णा अधूरी।
नाइट कर्फ़्यू क्यों अब कर रहा
निशा का अपमान?
क्या वायरस आज लूट रहा
नूतन संस्कृति का सम्मान?
श्मशान सुनहरे और दम-घुटे
लाशों का अम्बार।
दोनों हैं एक सरीखे,
महामारी हो या वर्ल्डवॉर।
मानव तू सुन्दरतम, क्यों करता
वन्य जीवों का बलिदान?
क्या वायरस आज तोड़ रहा
नूतन संस्कृति का अभिमान?
सिर्फ़ लॉकडाउन नहीं, यह
जनसंख्या का काउंटडाउन है।
क्या सस्ती संस्कृति की
स्वतंत्रता का अब शटडाउन है?
बढ़ रही चिन्ता और अवसाद,
घट रहे उम्मीदों के प्राण।
क्या वायरस आज बदल रहा
नूतन संस्कृति का मान?
मूल्यहीन मानव अपने ही
भ्रमों में मुर्दा या मदहोश है।
अंतर समझ नहीं पाता कि
यह परिन्दा या ख़रगोश है?
कैसे हो सकता उसकी
भ्रमित मानस का पुनर्निर्माण?
क्या वायरस आज बदल रहा
नूतन संस्कृति की पहचान?
दोस्तों की कोई कमी नहीं,
झूठ-सच दोनों से यारी है।
सावधान रहो नये वायरस से,
महामारी अभी भी जारी है।
कैसे करना होगा स्वयं को
बढ़ती उलझनों से परित्राण?
क्या वायरस आज बदल रहा
नूतन संस्कृति की पहचान?
वैश्विक शिक्षण-वीक्षण आज
कोरोना से है ग़मगीन।
सभी स्कूलों की मास्टर चाबी
अब बन गई वैक्सीन।
समझ पर अब शोध करो,
कैसे हो भ्रांतियों का समाधान?
क्या वायरस आज बदल रहा
नूतन संस्कृति की पहचान?
नई शिक्षानीति वैज्ञानिकों ने
स्पेसयान की तरह बनाई और सजायी है।
कोरोना ने क्रैश किया जबसे, शिक्षा
ऑनलाइन पर नीति ऑफ़-लाइन ही पायी है।
भारत बनेगा विश्वगुरु जब
हमारी नीतियाँ करेंगी ज्ञान का अनुसंधान।
क्या वायरस आज बदल रहा
नूतन संस्कृति की पहचान?