संपूर्ण रूप से
डॉ. तृप्ति कापड़ीकुछ टूट गया है मेरे अंदर इतनी ख़ामोशी से कि,
किसी को पता भी न चल सका
मैं बिखर चुकी हूँ इतनी ख़ामोशी से कि,
कोई देख भी न पाया
दिल में पत्थर रख लिया
आँखों को सख़्त हिदायत दे दी
कि दर्द पिघलकर आँखों से बहने न पाए
क्योंकि मैं टूटी ज़रूर हूँ
टुकड़ा-टुकड़ा होकर बिखरी ज़रूर हूँ
लेकिन मैंने उन टुकड़ों को सँभालकर रखा है
सहेज कर रखा है
उन्हें बिखरने नहीं दिया है
संपूर्ण रूप से...