संपूर्ण रूप से

01-07-2020

संपूर्ण रूप से

डॉ. तृप्ति कापड़ी (अंक: 159, जुलाई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

कुछ टूट गया है मेरे अंदर इतनी ख़ामोशी से कि, 
किसी को पता भी न चल सका
मैं बिखर चुकी हूँ इतनी ख़ामोशी से कि,
कोई देख भी न पाया
दिल में पत्थर रख लिया
आँखों को सख़्त हिदायत दे दी
कि दर्द पिघलकर आँखों से बहने न पाए
क्योंकि मैं टूटी ज़रूर हूँ
टुकड़ा-टुकड़ा होकर बिखरी ज़रूर हूँ
लेकिन मैंने उन टुकड़ों को सँभालकर रखा है 
सहेज कर रखा है
उन्हें बिखरने नहीं दिया है
संपूर्ण रूप से...

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