समय (नीरज सक्सेना)
नीरज सक्सेनाअनियंत्रित क्षणों से
जीवन भरा भरा
जीवन का पथ हैं
निरा घना घना
समय अड़ा कहता,
मैं नित नया उत्पात हूँ
जो तुम डिगो नहीं,
तो मैं तुम्हारे साथ हूँ
नित नई चुनौती किंतु
लक्ष्यों का पता नहीं
अनभिज्ञता ही मानस
की, सदा व्यथा रही
समय कहे, एक पल
दिन, दूजे पल मैं रात हूँ
जो तुम डिगो नहीं
तो मैं तुम्हारे साथ हूँ
कंटक पथ प्रतिस्पर्द्धाओं
का मार्ग संकरा
अंधड़, पतझड़, बसंत,
कभी सावन हरा भरा
समय कहे क्या रूप धरूँ
स्वयं भी मैं अज्ञात हूँ
जो तुम डिगो नहीं,
तो मैं तुम्हारे साथ हूँ
वात के प्रतिकूल
झोखों की मैं शृंखला
सर्द वादियाँ, तपता बंजर,
मैं फुहार की अंतर्कथा
निर्भय की जीत मैं,
निर्बल मन एक झंझावात हूँ
जो तुम डिगो नहीं,
तो मैं तुम्हारे साथ हूँ
जो विमुख नहीं, गिर
के उठा, उठ के गिरा
जो हर अवस्था निडर,
मार्ग पर बढ़ता चला
समय कहे मैं विभिन्नताओं
का असीम प्रपात हूँ
जो तुम डिगो नहीं,
तो मैं तुम्हारे साथ हूँ