समर अभी बाक़ी है

01-08-2022

समर अभी बाक़ी है

उत्तम टेकड़ीवाल (अंक: 210, अगस्त प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

आस्तीन के साँपों में ज़हर अभी बाक़ी है
भरत पुत्र, सजग रहें, समर अभी बाक़ी है
 
प्राचीर से सूरज निकला, रंग केसरिया छा गया
बह गई झूठ की गगरी, ज़मीर गँगा नहा गया
संस्कार के कुंँओं में कमता नहीं विश्वास का जल
प्रगति के हंँसों के पंखों में हौसले होते प्रबल
 
समता को सींचती वो नहर अभी बाक़ी है
भरत पुत्र, सजग रहें, समर अभी बाक़ी है
 
इतिहास ने दिये हैं काले भद्दे घाव हमें
नफ़रत के वन में चलना है नंगे पाँव हमें
तोड़े मंदिर हज़ार, हिले नहीं नींव के पत्थर
नहीं विचारों की आज़ादी, वर्ष बीते पचहत्तर
 
वेदों में ज्ञान की अमोल धरोहर अभी बाक़ी है
भरत पुत्र, सजग रहें, समर अभी बाक़ी है
 
आक्रांता शासक बने, लूटे जान और माल
मिली आज़ादी या विभाजन, क्या थी ये चाल
संविधान बना, क़ानून बने, ले उधारी ख़्याल
न्याय का पहिया लुढ़क रहा, बीते पचहत्तर साल
 
कटे खोखले तने, घुनों के घर अभी बाक़ी हैं
भरत पुत्र, सजग रहें, समर अभी बाक़ी है
 
राजनीति हुई बहुत, नीतियाँ लेकिन कम थे
बातें हुई बड़ी बड़ी, बाते नहीं, सब वहम थे
स्वार्थ के गड्ढों से छलकता है देशप्रेम हमारा
झूठे कथानक ने बनाया हमें कमज़ोर, बेचारा
 
नवचेतना लिए परिवर्तन की लहर अभी बाक़ी है
भरत पुत्र, सजग रहें, समर अभी बाक़ी है
 
धन धान्य से धन्य हम, विश्वगुरु का पद हमारा
सबका साथ सबका विकास का विशद हमारा नारा
और देर नहीं, उठो यज्ञ की आहुति बनकर
बेड़ियाँ पिघली, रहें क्यों मूक दर्शक बनकर
 
अस्त्र न छूटे, विजय का पहर अभी बाक़ी है
भरत पुत्र, सजग रहें, समर अभी बाक़ी है

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