समझ
विशाल जैन
हालात समझने में, लोगों को परखने में
ज़िन्दगी जीने में, सच्चाई जानने में,
देर कर देता हूँ मैं।
लेकिन क्या करूँ हालतों से लड़ना नहीं सीख पाया
अपनों से झूठ कहना नहीं जान पाया,
लोगों में अपने पराए का फ़र्क़ करने में
देर कर देता हूँ मैं।
कहते हैं कि सोचो समझो और बोलो,
पहले तोलो फिर करो मोल फिर देखो
क्या करूँ इतना सब सोचने में
देर कर देता हूँ मैं।
सब छूट रहे हैं, सब खो रहे हैं,
मेरा पक्ष सुनने में कोई तैयार नहीं,
ये लिखना और पढ़ना,
बोलने वाले रिश्ते ख़राब कर रहा
इतना सब नाप-तोल कर, ख़ुद को जानने में,
देर कर देता हूँ मैं।
अब जब बातें समझ आती हैं,
तो ग़लतियाँ और माफ़ी
सुनने को कोई राज़ी नहीं,
माना हो जाती ग़लतियाँ हज़ार
या एक ही ग़लती बार हज़ार,
लेकिन किसी के लिए दुश्मनी नहीं रखता मैं,
इतना सब कहने में और बताने में,
देर कर देता हूँ मैं।