सलीना तो सिर्फ़ शादी करना चाहती थी
उषा राजे सक्सेनासुबकियों के बीच निराश सलीना ने बोखारी के साथ खोले, अपने बचत-खाते की किताब पर नज़र डाली। पिछले तीन सालों में दोनों मिलकर सिर्फ़ पच्चीस पाऊँड ही बचा पाए थे। शादी के लिए कम-से-कम डेढ़ सौ पाऊँड तो चाहिएँ ही चाहिएँ। दावत, टाफ्टा सिल्क का कैन-कैन लगा हुआ लंबा सफ़ेद गाउन, चेहरे पर डालने के लिए महीन जाली वाला घूँघट के लिए चुन्नी (वाशोवा) और पादरी (शाउद यानी प्रीस्ट) के बिना भला शादी कैसे हो सकती है! अगर सलीना ब्रिटेन की एक आम शहरी होती तो उसे सरकार से कुछ न कुछ आर्थिक सहायता ज़रूर मिल जाती...वह सोचती।
बात यह है कि पिछले चार वर्षों से ब्रिटेन में रहते हुए भी सलीना ब्रिटेन की आम नागरिक नहीं है वह ब्रिटेन की तीसरे दर्जे की वह नागरिक है जिसका कोई वजूद नहीं है यानी वह इल्लीगल इमिग्रेंट (अवैध नागरिक) है। वह वोट नहीं दे सकती है। उसके पास नेशनल इन्श्योरेंस नम्बर नहीं है। इसलिए वह ‘वेलफ़ेयर स्टेट’ के लाभ से वंचित है। सलीना के कलेजे में गहरी हूक उठी और वह रुआँसी हो गई।
बोखारी, सलीना का मंगेतर उसे अक़्सर समझाता है कि चिंता करने से कोई फ़ायदा नहीं है। उसे पूरी आशा है कि जल्द ही ऐसा कोई नया क़ानून बनेगा जिसके तहत औरों के साथ वे लोग भी ‘लीगलाइज़’ हो जाएँगे। बस समय की बात है। अब बस अगले हफ़्ते चुनाव होने वाला है। लेबर पार्टी जैसे ही पॉवर में आएगी तो कोई न कोई बिल ‘इल्लीगल इमिग्रेंट्स’ के पक्ष में आ ही जाएगा। ‘लेबर पार्टी’ आम आदमी की पार्टी है, इससे पहले सन् 1973 में लेबर पार्टी ने अवैध नागरिकों को वैध बनाने का क़ानून पास किया था। देखना! इस बार टोरी सरकार ज़रूर हारेगी। वह इस निश्चय के साथ कहता है जैसे टोरी सरकार को हराना और लेबर को जिताना उसके हाथ में है। सलीना आश्वस्त नहीं हो पाती। लेबर हो या टोरी जब वे वोट दे ही नहीं सकते हैं तो वे लेबर पार्टी को जिताएँगे कैसे? वैसे फ़ैक्ट्री में सब लोग लेबर पार्टी की जीत पर ही नज़र गड़ाए बैठे हैं। सलीना जानती है फ़ैक्ट्री में न तो किसी को सही तरह से क़ानून का पता है और न ही पॉलिटिक्स का, सब लोग बस अपनी-अपनी अटकलें लगाते रहते हैं।
सलीना के दिल में हर वक़्त यही डर समाया रहता है कि अगर कहीं वे लोग पकड़े गए, तो पहले सीधा जेल और फिर जेल से उन्हें वापिस उस लुटे-पिटे यूगोस्लाविया भेज दिया जाएगा जहाँ अब उनका अपना कोई नहीं बचा है।
तमाम दिक़्क़तों और भय के बावजूद सलीना सोचती है कि उसकी ज़िन्दगी ऐसी कुछ ख़ास बुरी नहीं है। खाने को दोनों वक़्त खाना है, रहने को अपना अलग छोटा-सा कमरा है, किचन है, टॉयलेट-बाथ है। सुख-दुःख में काम आ जाने वाले दोस्त हैं। अब सलीना की सिर्फ़ एक ही ख़्वाहिश है कि वह और बोखारी जल्द से जल्द शादी करके अपनी गृहस्थी जमाएँ।
सलीना एक आम लड़की है। मगर तमाम उन आम लड़कियों की तरह वह चुप-चाप शादी कर के घर नहीं बसाना चाहती है। सलीना अपनी शादी धूम-धाम से मनाना चाहती है जिसमें उसके फ़ैक्ट्री वाले सब दोस्त भी शामिल हों और ममा-तता (अम्मी-अब्बू) की बेचैन आत्माओं को भी शांति मिले।
सलीना, बोखारी और तमाम वे सब ग़ैरक़ानूनी ढंग से आए इमिग्रैंट्स जो उसके साथ फ़ैक्ट्री में काम करते हैं, उन सबका ख़ूब शोषण होता है। हर किसी को ‘सुपरवाइज़रों’ के मनमुताबिक़ देर-देर तक बहुत कम पैसों में काम करना होता है साथ ही उन सबको दब-छुप कर भी रहना होता है। जिस फ़ैक्ट्री में सलीना और उसके साथी काम करते हैं वह भी अवैध है। अगर कहीं पुलिस वालों को पता चल गया कि इस ‘डिस्यूज़्ड डिमोलिशन’ में आई जगह पर पलंग की मैट्रेस बनाने वाली फ़ैक्ट्री चलती है तो सब के सब पहले तो जेल जाएँगे और फिर वे अपने उन नामुराद देशों को भेज दिए जाएँगे जहाँ से वे सब भागे हैं। सलीना और बोखारी के आगे-पीछे अब कोई नहीं है। अगर कोई है तो बस फ़ैक्ट्री में काम करने वाले वे लोग जो सबके सब उन्हीं जैसे असुरक्षित स्थिति में रह रहे हैं। फ़ैक्ट्री में काम करने वाला तक़रीबन हर शख़्स अवैध और भगोड़ा है। कोई बांग्लादेशी है तो कोई पाकिस्तानी, कोई यूगोस्लाविया का है तो कोई अफ़्रीका या नाइजीरिया का। भिन्न-भिन्न देशों के होते हुए, एक-दूसरे की भाषा न जानते हुए भी सब एक दूसरे के दुख-दर्द को गहराई से समझते हैं और आपस में एक-दूसरे का सुख-दुख बाँटते रहते हैं।
सलीना और बोखारी दोनों बचपन के दोस्त हैं। दोनों एक ही मुहल्ले के रहने वाले हैं। जब युगोस्लाविया में सर्बियन और बोसनियन में जंग छिड़ी और लोग अपने ही दोस्तों और संबंधियों के हाथों बकरों की तरह हलाल होने लगे तो ममा और ताता उन्हें बचाते-बचाते ख़ुद उस हैवानियत के शिकार हो गए। उन दिनों दोस्त और दुश्मन में फ़र्क करना मुश्किल हो रहा था। वे प्रजातियाँ जो बरसों-बरस साथ रही थीं तक़रीबन एक ही सभ्यता, संस्कृति और भाषा में भागीदारी रखती थीं अब एक दूसरे की जान की प्यासी हो रही थीं। लोग बौखलाए हुए थे, ऐसे में तमाम लोग अपने नाबालिग़ बच्चों को इंग्लैंड, अमेरिका, यूरोप या जहाँ कहीं उन्हें समझ आता भेज देते, सिर्फ़ यह सोचकर कि कम-से-कम वहाँ तो उनकी जान बची रहेगी। बोखारी और सलीना दोनों के माँ-बाप ने ख़ुद अपनी जान देकर उन्हें यूगोस्लाविया से इंग्लैंड इसीलिए भगाया था कि वे इंग्लैंड जाकर अपनी ज़िन्दगी किसी ढर्रे पर लगाकर वक़्त आने पर शादी कर के सुख की ज़िन्दगी जी सकेंगे। ममा और ताता की निगाह में इंग्लैंड एक ऐसा ‘प्रामिस लैंड’ था जहाँ सड़कें सोने की और गलियाँ चाँदी की होती हैं। सलीना को सोने-चाँदी की गलियाँ तो नहीं मिलीं, हाँ, ईस्ट-एंड की सीली हुई गलियों में एक सीलन भरे मकान में यहूदी मारिया पोलोवस्की की बदौलत एक कमरा किराए पर मिल गया जिसका किराया मारिया ने उससे तब तक नहीं लिया जब तक उसे फ़ैक्ट्री में नौकरी नहीं मिल गई। बोखारी, सलीना का मंगेतर अन्नु चटर्जी के साथ साँझा सिंगल बेड शेयर करता है। अन्नु और बोखारी दोनों ही एक चमड़े की सिलाई फ़ैक्ट्री में काम करते हैं। अन्नु नाइट शिफ़्ट में और बोखारी दिन में। इसलिए उस एक सिंगल बेड पर दिन को अन्नु सोता है और रात को बोखारी।
सलीना और बोखारी को लंदन आए तक़रीबन तीन साल हो चुके थे पर शादी के लिए उतना धन अभी तक नहीं जुटा पाए जितना कि सलीना को शादी के लिए चाहिए था। सलीना विवाह की गाँठ को एक धार्मिक पवित्र सामाजिक उत्सव मानती है जिसमें हर किसी की रज़ामंदी के साथ शुभकामनाएँ और आशीर्वाद ज़रूरी है।
अब सलीना का धीरज टूट रहा है। उसे लगता है कि अगर इस वर्ष उसकी शादी नहीं हुई तो फिर कभी नहीं हो सकेगी। बोखारी से अब इंतज़ार नहीं होता है। सलीना के पास आते ही उसके बदन में बिजलियाँ कौंधने लगती हैं, उसकी सारी नसें तन जाती हैं, साँस फूलने लगती है। कभी-कभी तो वह सलीना के दक़ियानूस विचारों पर क्रोधित भी हो उठता है, ‘उसे कोरे काग़ज़ के टुकड़ों और शाउद (पादरी) के चंद शब्दों में कोई दिलचस्पी नहीं है, वह तो सिर्फ़ दिल का रिश्ता मानता है।’
‘मर्द है न! उसे क्या फ़र्क पड़ता है?’ सलीना सोचती है। सलीना धर्मभीरू है। उसे ममा और ताता को दिया हुआ वचन याद है। अगर वह बिना शादी के घर बसा लेती है तो ममा और ताता की आत्मा को असीम यंत्रणा होगी। ‘नहीं नहीं, वह बिना शादी के घर नहीं बसाएगी।’ सलीना जानती है शादी जैसे रिश्तों पर चर्च और समाज की मुहर लगनी ज़रूरी है। चार लोग शादी-ब्याह के साक्षी हों तो समाज में इज़्ज़त बनी रहती है वर्ना अँधेरे में तो कोई कुछ भी कर सकता है। परिवार के न होने पर दोस्तों की शुभकामनाएँ और उनकी हिस्सेदारी ही तो ऐसे पवित्र कार्य को सार्थकता देती है।
सलीना हर वक़्त बस इसी उधेड़-बुन में लगी रहती है। तरह-तरह के उपाय सोचती है कि वह क्या करे कि रातों-रात दो सौ पौंड इकट्ठा हो जाएँ। इन दिनों दिन-रात धन जोड़ने और शादी के सपने देखने के कारण वह कुछ दिग्भ्रमित सी हो उठी है। एक-दो बार तो उसने लॉटरी के टिकट भी ख़रीदे, इनाम तो आया नहीं, दो पौंड और पर्स में से उड़ गए। अब वह लॉटरी के टिकट नहीं भरती है बस एक-एक पेनी बचा कर उसे गुल्लक में डालती जाती है। इधर धन बचाने के लिए उसने बाल कटाना, लिपिस्टिक लगाना और भरी सर्दी में पैरों में स्टॉकिंग्स (पारदर्शी नाइलॉन के कमर तक पहनने वाले मोज़े) पहनना तक बंद कर दिया है… पर इतने से ही डेढ़ सौ पाऊँड थोड़े ही बच जाते हैं।
कल रात सपने में वह सफ़ेद टाफ्टा का कड़क सिटीकाक्रोफ़ पहने, पारदर्शी जाली की ‘वाशोवा’ में चेहरा छुपाए, सिल्क के फूलों की पोज़ी (पुष्प-गुच्छ) लिए ‘आइल’ (मंच) पर चल रही थी। शाउद शादी के मंत्र पढ़ रहा था। बोखारी और वह घुटने टेके, साथ-साथ मरने-जीने के वायदे कर रहे थे। बोखारी ने उसकी उँगली में शादी का ख़ूबसूरत छल्ला पहनाया था… फिर… फिर वह बेताब घड़ी आई जब शाउद ने कहा, ”यू मे किस द ब्राइड” वह लजा गई और बोखारी ने उसका घूँघट उठाकर सबके सामने उसके लबरेज़ कुँआरे होंठों को अपने होंठों में भींचते हुए लंबा चुम्मा लिया था। सलीना जब सुबह उठी तो उसके होंठ गीले थे… ‘ओह सपने…! हाय! कब तक जीती रहेगी वह सपनों में।’ सलीना की घबराहट दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। बोखारी मर्द है कहीं वह किसी और लड़की के गिरफ़्त में आ गया तो वह बस टापती रह जाएगी। तशा और तन्नी अक़्सर बोखारी से छेड़-छाड़ करती हैं। सलीना जब अपने को बहुत असुरक्षित महसूस करती है तो उसके दिल की धड़कन बढ़ जाती है।
उस दिन उसे उदास और दुखी देखकर उसके साथ काम करने वाली एक नई आई, हम उम्र लड़की दीनार ने उससे दोपहर के खाने की छुट्टी में पूछा, ”क्या बात है सलीना तू बेहद थकी और उदास लग रही है? क्या उस बदबख़्त सुपरवाइज़र ने तुझसे भी छेड़-छाड़ की?”
‘नहीं…नहीं. ऐसी कोई बात नहीं है। वह तो मुझसे बड़ी शराफ़त से पेश आता है।” सलीना ने आह भरते हुए कहा।
”बता न, क्या बात है? कह देने से दिल का भार हलका हो जाता है।” दीनार ने उसकी बाँहों को सहलाते हुए कहा।
सलीना सब्र नहीं कर सकी, उसने अपने और बोखारी के शादी के ख़र्चे को बताते हुए कहा, ”क्या बताऊँ दीनार बोखारी अब जुदाई सहन नहीं कर पा रहा है। बाज़ वक़्त तो वह ज़बरदस्ती करने पर आमादा हो जाता है। शादी के लिए अब तक हम सिर्फ़ पच्चीस पाऊँड ही जोड़ पाए हैं अभी हमें कम से एक सौ पचीस पाऊँड का और इंतिज़ाम करना है। क्या करूँ? कैसे करूँ? कुछ समझ नहीं आता।” फिर उसने सुबकते हुए आगे कहा, ”अब बोखारी बेसब्र होने लगा है। मैं बेहद घबरा गई हूँ अगर कहीं उसने किसी और से रिश्ता बना लिया तो मेरा तो फिर सब कुछ लुट जाएगा न। बताओ अब मैं क्या करूँ? मेरा तो हाल ही बेहाल हो रहा है।”
दीनार उसकी पीठ सहलाते हुए शब्द-शब्द में मधु घोलती हुई बोली, ”रोना बंद कर मेरी प्यारी सलीना। मैं तुझे एक पता बताती हूँ, तू वहाँ चली जा। दो सौ पाऊँड तो तुझे बस एक सिटिंग में मिल जाएँगे। बस ज़रा हिम्मत और एहतियात से काम लेना होगा।”
”क्या? कहीं तू मुझसे ब्लू फ़िल्म या काल-गर्ल की बात तो नहीं कर रही है। मैं वैसा कुछ नहीं कर सकती हूँ,” सलीना ने दीनार के हाथ को झटके से हटाते हुए, रूखी आवाज़ में कहा।
”क्या बात करती है सलीना? भला ऐसी घिनौनी बात मैं तुझसे करूँगी जो अपने मंगेतर तक को बिस्तर पर नहीं आने देती है।”
”फिर कैसे? मैं होटल या क्लब में डांस-वांस भी नहीं करूँगी।”
”मुझे मालूम है सलीना। तू मुझे कोई छिनाल समझती है क्या?” दीनार ने उसके कंधे पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा, ”देख लो भले लोग हैं। सबाब का काम कर रहे हैं। वे लोग कोई परीक्षण कर रहे हैं, उन्हें इंसानी अंडों (डिम्ब) की ज़रूरत है जो हमारी ‘ओवरी’ (डिम्बकोश) में हर महीने पैदा होते हैं और बेकार चले जाते हैं। मुझे भी अब्बू की बीमारी में एक बार मुल्क पैसा भेजना पड़ा था तब वे लोग ही मेरे काम आए थे। मैंने उन्हें अपनी ओवरी में से अंडे निकालने दिए थे। सच मान मुझे कोई तकलीफ़ नहीं हुई। तुझे पता है, मेरी बिटिया रूबी अब साल भर की है। वह हट्टी-कट्टी, तंदरूस्त और बिलकुल नार्मल है।” उसने कुछ रुक कर सलीना की मायूसी मजबूरी और विचलित होती मानसिक स्थिति को देखते हुए फुसफुसा कर कहा, ”अगर तू अपने अंडे नहीं देना चाहती है तो नहीं सही। फिर और भी तरीक़े हैं हमारे बदन में दो गुर्दे होते हैं, काम तो सिर्फ़ एक ही करता है अगर तू चाहे तो अपना फ़ालतू गुर्दा उन्हें दे सकती है। अल्ला जाने कितने लोग ‘किडनी डाइलिसिस’ पर पड़े-पड़े अपनी जान किसी ‘किडनी डोनर’ के इंतज़ार में गँवा देते हैं।” दीनार किसी भी तरह सलीना को अपने शिकंजे के बाहर नहीं जाने देना चाह रही थी, इसके साथ उसका कमीशन जो जुड़ा हुआ था।
”देख सलीना! मैंने तुझे रास्ता बता दिया है अब आगे तेरी मर्ज़ी। सच बात तो यह है कि यह काम वो लोग उन औरतों की भलाई के लिए कर रहे हैं जो बच्चे नहीं पैदा कर सकती हैं। तुझसे अंडा लेकर वे किसी बदनसीब औरत की बच्चेदानी में तेरा अंडा बिठा देंगे, तेरी दया से कोई रोता हुआ घर आबाद हो जाएगा। एक सिटिंग के वो लोग दो सौ पौंड देते हैं। इसमें कोई ख़तरा वग़ैरह नहीं है। अंडे तो औरतों के डिम्बकोश में हर महीने तैयार होते ही रहते हैं।”
”तू सच कहती है दीनार, मुझे तो डर लग रहा है,” सलीना ने बेसब्री से कहा। पर उसकी आँखों में शादी के बेहिसाब सुनहरे सपने तैरने लगे।
”सबाब का काम है। तुझे कोई तकलीफ़ भी नहीं होगी। वे अच्छे लोग हैं साथ ही वे अनुभवी डॉक्टर हैं। यह काम वो लोग बरसों-बरस करते चले आ रहे हैं।” सलीना ने ‘किडनी’ के ख़रीद-फरोख़्त की बात तो पहले भी सुन रखी थी। अभी हाल ही में हरिन्दर ने अपनी एक किडनी दो सौ पाऊँड में बेची थी, पर उसने अंडे बैठानेवाली बात अभी तक नहीं सुनी थी।
”देख मैं तुझे उनका पता बताती हूँ। तू बेफ़िक्र होकर वहाँ चली जा, किसी को पता भी नहीं चलेगा। तुझे तेरे मन माफ़िक पैसे भी मिल जाएँगे और तू अपनी शादी बोखारी के साथ बना सकेगी। वह बिलकुल महफ़ूज़ जगह है।” दीनार मन ही मन अपने कमीशन का हिसाब लगा रही थी।
सलीना ने दीनार से उनका पता लिया और दो-तीन रात की उहा-पोह के बाद एक शाम हैंडबैग में पता डाल कर, शादी के सपने देखती, काग़ज़ पर लिखे उस पते को खोजती हुई उस जगह अकेली पहुँच गई। उसने इस बाबत बोखारी से बात करने की कोई ज़रूरत नहीं समझी, क्योंकि उसे बोखारी की प्रतिक्रिया पर संदेह था। वैसे भी घर-गृहस्थी और उसकी ज़रूरतें सिर्फ़ औरतें ही समझ सकती है। सलीना की आँखों के आगे टाफ्टा की ख़ूबसूरत सिटीकाक्रोफ़ और ढेरों मेहमान मौज-मस्ती करते हुए उसे बधाइयाँ देते दिख रहे थे।
वह एक साधारण-सा मकान था, उस पर कोई नाम पट्टी नहीं लगी थी। दरवाज़े के एक ओर दीवार पर बिजली की एक घंटी, इंटरकॉम और उसके साथ एक नन्हा-सा कैमरा लगा हुआ था जिसके लेंस के द्वारा बाहर दरवाज़े पर आए आगंतुक को अंदर बैठा व्यक्ति देखकर उससे बातचीत कर सकता था। घंटी बजाने पर अंदर बैठे व्यक्ति के पूछने पर सलीना ने उन्हें अपना नाम बताते हुए कहा कि उसे दीनार ने उनसे मिलने के लिए भेजा है। नर्वस सलीना का दिल बुरी तरह से धड़क रहा था।
तीन-चार मिनट बाद एक साधारण-सी मंझोले क़द की घरेलू औरत ने दरवाज़ा खोलकर उसे उस बैठकनुमा कमरे में पड़े सोफ़े पर बैठाते हुए वाटर-फ़िल्टर से गिलास भरकर पानी पीने को दिया।
पानी पीने के बाद भी सलीना सहज नहीं महसूस कर रही थी। घबराहट के कारण सर्दी के दिनों में भी उसके माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आई थीं। उस औरत ने उसे टिश्यू बॉक्स पकड़ाते हुए कहा, "घबराओ नहीं सलीना। धीरज रखो। तुम्हारा काम हो जाएगा।" तमाम नर्वसनेस और घबराहट के बीच भी शादी और उसके जश्न की सोचकर, सलीना अपने आपको आगे आने वाले वक़्त के लिए तैयार करने की पूरी कोशिश कर रही थी।
दो-तीन मिनट बाद वह औरत सलीना को सहज करने के लिए उससे मौसम, घर-परिवार और बढ़ती हुई महँगाई आदि पर बातें करती रही। इसी बीच एक आदमी उन्हें ‘हेलो’ करते हुए बाहर गया और इधर-उधर देख-दाख कर फिर अंदर आकर उसने उस मंझोले क़द की औरत से कहा कि वह सलीना को ऊपर कंसल्टिंग रूम में ले जाए।
एक छोटे-से गलियारे को पार कर दोनों सीढ़ियों से चढ़ते हुए ऊपर क्लीनिक वाले कमरे में आ गई। कमरे का फ़र्श लकड़ी का बना हुआ था। एक ओर स्टील का एक टेम्परैरी-सा ऑपरेशन टेबुल पड़ा हुआ था, जिस पर प्लास्टिक की एक पारदर्शी चादर पड़ी हुई थी। ऑपरेशन टेबुल के पास रखे छोटे से टेबुल पर एक पोर्टेबुल ‘स्टरलाइज़र’ और कुछ ‘सर्जिकल टूल्स’ एक पारदर्शी चौकोर बक्से में सजाकर रखे हुए थे। कमरे के दाहिने कोने में एक छोटा सा वाश-बेसिन लगा हुआ था उसके ऊपर ‘वॉशिंग अप लिक्विड’ और ‘किंबरले’ का टावल ‘रोल’ लगा हुआ था। कमरे के बाएँ कोने में एक लकड़ी की टेबुल पड़ी हुई थी जिसके एक तरफ एक रिवाल्विंग हत्थेवाली कुर्सी थी और दूसरी तरफ मरीज़ों के बैठने के लिए दो गद्दीदार कुर्सियाँ रखी हुई थीं।
कमरे में डेटॉल की तीखी गंध आ रही थी। सलीना का दिल बैठने लगा। उसका मन किया कि वह वापस भाग जाए पर दो सौ पाऊँड और शादी की चाहत उसे वहाँ रोके रही।
ज़रा देर बाद ही एक लंबा दुबला-पतला आदमी सफ़ेद कोट पर गले में स्टेथेस्कोप लटकाए कमरे में दाख़िल हुआ और उस रिवाल्विंग कुर्सी पर बैठ गया जो क्लीनिक के डॉक्टर के लिए रखी हुई थी। सलीना को लगा शायद यह वही व्यक्ति है जो थोड़ी देर पहले उसे नीचे मिला था, पर फिर उसने दोबारा इस विषय पर नहीं सोचा। क्लीनिक डॉक्टर ने सलीना को कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। वह औरत ऑपरेशन टेबुल के पास खड़ी उनकी बातें सुनती रही।
डॉक्टर ने मेज़ पर रखे कटोरे में से एक लिकरिश (सौंफ और चीनी से बनी स्वीट) अपने मुँह में रखते हुए कटोरा सलीना की ओर बढ़ाया। फिर बिना यह देखे कि सलीना ने लिकरिश लिया या नहीं, उसने सामने रखे चिट-पैड पर सलीना का नाम, पता, टेलिफोन नम्बर और उम्र आदि लिखकर उसे मेज़ की दराज़ में रख दिया। ड्रार बंद करके उसने थोड़े से शब्दों में सलीना को ओवरी में से अंडा निकालने की संक्षिप्त ‘रिस्क-फ़्री’ प्रक्रिया बताई और साथ ही उसने कहा कि आज वह उसका ‘गाइनाकोलोजिकल टेस्ट’ (गर्भाशय परीक्षण) के लिए रक्त लेगा। यदि सब कुछ ठीक रहा तो उसे तीन दिन बाद फोन कर के बुला लिया जाएगा।
सलीना को क्लीनिक का वातावरण ठीक ही लगा। ‘गाइनाकोलाजिकल’ और रक्त परीक्षण की प्रक्रिया बेहद साधारण थी। अत: उसका मानसिक संतुलन पहले से बेहतर हो गया। उसे दो सौ पाऊँड और शादी में पहननेवाला सफ़ेद झकाझक लेसदार गाउन दिख रहा था।
दूसरी सिटिंग में क्लीनिक के डॉक्टर ने सलीना को बताया कि वह स्वस्थ है और ‘एग’ ‘डोनेट’ करने की एक योग्य प्रत्याशी है। उस दिन उसने सलीना से एक अनुबंध पर हस्ताक्षर कराया जिसमें अंग्रेज़ी में लिखा था, ‘अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के बाद प्रार्थी अनुबंध में लिखे सभी शर्तों को पूरा करने के लिए बाध्य है। प्रार्थी द्वारा स्वास्थ्य के प्रति बरती गई लापरवाहियों के लिए क्लीनिक उत्तरदायी नहीं होगा।’
सलीना ने अनुबंध पर हस्ताक्षर तो कर दिए, पर सही ढंग से अंग्रेज़ी न आने और हड़बड़ाहट के कारण वह अनुबंध में लिखे गए किसी भी शर्त को न तो पढ़ पाई और न ही समझ पाई। उसने सोचा ‘ये लोग अनुभवी डॉक्टर हैं। सब कुछ ठीक-ठाक ही होगा।’
उस दिन क्लीनिक के डॉक्टर ने डिम्बकोश को उत्तेजित और अधिक से अधिक डिम्ब तैयार करने के लिए सलीना को पहला हारमोन का इंजेक्शन देते हुए कहा, ”सब कुछ अच्छा और ठीक होगा उसे चिंता नहीं करनी चाहिए।” सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए नर्स की यूनीफ़ार्म पहने उस गठीले बदन वाली औरत ने कहा, ‘अगले बारह दिन उसे हर दिन शाम को इंजेक्शन लगवाने के लिए क्लीनिक आना होगा।’ सलीना ने सिर हिलाते हुए हामी भरी और घर चली आई। वैसे भी कम पढ़ी-लिखी होने के कारण अक़्सर सलीना को अपने से बड़े लोगों से प्रश्न करने की आदत नहीं थी। उसने न तो उन लोगों से कुछ पूछा ना ही उन्होंने उसे कुछ बताया।
सात-आठ इंजेक्शन लगने के बाद सलीना को पेट में नीचे की ओर कुछ कुछ हल्का-हल्का दर्द होने लगा पर सलीना ने इस तरफ कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया। ठीक बारह दिन के बाद एक दिन शाम को ‘जेनरल एनिस्थीसिया’ देकर क्लीनिक वालों ने सलीना के ओवरी में से अंडे निकाल लिए। दूसरे दिन जब उसे होश आया तो एक भूरे लिफ़ाफ़े में दो सौ पाऊँड कैश उसके हाथों में पकड़ाते हुए उसे फटाफट घर भेज दिया गया।
घर आने के बाद सलीना ने पैसों को घुटने तक पहनने वाले बूट्स में छुपा कर, ख़ुदा का शुक्र अदा करते हुए सोचा कि कल शाम वह बोखारी से बात करके शाउद से शादी की तारीख़ पक्की कर देगी। क्लीनिक आने-जाने की हबड़-तबड़ में पिछले कई दिनों से उसकी मुलाक़ात बोखारी से नहीं हो पा रही थी।
रात को एनिस्थीसिया के असर से उसे गहरी नींद आई। पर दूसरे दिन दोपहर को अचानक उसे लगा कि उसके पेट में भूचाल-सा आ रहा है। उसे उल्टियों के साथ-साथ चक्कर भी आने लगे। उसने अपने मुँह पर ठंडे पानी के छीटें मारते हुए ख़ुद को सम्हालते हुए सोचा, ‘थोड़ी बहुत तकलीफ़ तो होगी ही पर सब कुछ जल्दी ही ठीक हो जाएगा। घबराने की कोई बात नहीं।’ तभी कमरे के दरवाज़े को धकेलते हुए बोखारी अंदर आया। वह अपना पेट पकड़े हुए था। उसका चेहरा इस तरह ज़र्द था मानो वह कई दिनों का बीमार हो। आते ही उसने सलीना को एक भूरा लिफ़ाफ़ा पकड़ाते हुए कहा, ”सलीना ये ले दो सौ पाऊँड और जा अपने लिए एक टाफ्टा की ख़ूबसूरत सिटीकाक्रोफ ले आ, अब हम जल्दी से शादी की तारीख़ पक्की कर लेते हैं।”
सलीना का माथा ठनका, बोखारी कुछ ठीक नज़र नहीं आ रहा था। ”पर तुझे ये पैसे कहाँ से मिले बोखारी, या ख़ुदा क्या तूने अपनी किडनी…।”
लिफ़ाफ़ा पकड़ना तो दूर सलीना अभी अपना वाक्य भी पूरा नहीं कर पाई थी कि उसके आँखों के आगे इस तरह अँधेरा छाया कि वह बेहोश होकर गिर पड़ी। जब उसकी आँख खुली तो उसने अपने आपको लंदन अस्पताल में डॉक्टर और नर्सों के बीच पाया। उसे ऑक्सीजन और रक्त दिया जा रहा है। नर्स ने उसका ‘ब्लड प्रेशर चेक’ करके दवा देते हुए बताया कि वह ख़तरे से बाहर है।
”आख़िर मुझे हुआ क्या, मैं यहाँ कैसे आई? तुम लोग कौन हो?” घबराई हुई, डरी-सहमी सलीना ने नर्स का हाथ पकड़कर रोते हुए पूछा।
नर्स उसकी बाँहों को सहलाते हुए नर्म स्वर में बोली, ”घबराओ मत सलीना, तुम यहाँ सुरक्षित हो। तुम लोग बहुत ही ग़लत लोगों के हाथ पड़ गए थे। उन वहशी अपराधियों ने तुम लोगों के शरीर के बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंगों को क्षत-विक्षत कर दिया है। क्या कहूँ उन नरभक्षी ‘ह्यूमन ऑरगन’ के व्यापारियों ने तुम्हारी मजबूरी का फ़ायदा उठा कर तुम्हें और बोखारी को बुरी तरह ज़ख्मी कर दिया है। तुम्हें शायद नहीं मालूम उन लोगों ने तुम दोनों को तक़रीबन मौत के मुँह में झोंक दिया था। वह तो वक़्त पर तुम्हारी लैंडलेडी मरिया पोलोनेस्की ने एम्बुलेंस बुला कर तुम्हारी और तुम्हारे प्रेमी बोखारी की जान बचा दी। अब तक तुम लोगों को पाँच पाइंट रक्त और ‘सेलाइन वाटर’ चढ़ाया जा चुका है। सलीना तुम्हारी ‘ओवरी’ बुरी तरह से छिदी हुई है जिसका प्रभाव तुम्हारी ‘किडनी’ पर पड़ा है। तुम्हें आराम की सख़्त ज़रूरत है।”
’ओवरी छिदी हुई है क्या कह रही है नर्स, क्या मैं कभी गर्भ नहीं धारण कर सकूँगी।’ स्थिति की गंभीरता को समझते ही सलीना ज़ोरों से चिल्ला उठी, "नहीं, नहीं, यह नहीं हो सकता है… मैं… मैं…” कहते हुए सलीना फूट-फूट कर रोने लगी।
दूसरे पलंग पर तकिए के सहारे अधलेटे बोखारी ने जब सलीना के रुदन की आवाज़ सुनी तो वह लेटा नहीं रह सका, किडनी निकाले जाने के कारण बोखारी के ‘ब्लैडर’ और दूसरी किडनी में बुरी तरह ‘इन्फ़ेक्शन’ फैल गया था वह तेज़ बुखार में तड़प रहा था और फिर भी दर्द से कराहता, ड्रिप स्टैंड के साथ ख़ुद को घसीटता हुआ सलीना के बिस्तर के पास रखी कुर्सी पर आ बैठा, ”सलीना, मेरी सलीना, रो मत, मेरी जान…” कहते हुए उसने सलीना के माथे को सहलाते हुए आगे कहा, ”सल्लो, तू दिल ना छोटा कर तू ‘सिटीकाक्रोफ’ और ‘वाशोवा’ पहनकर मेरे साथ ‘आइल’ पर चलेगी, मैं तेरी उँगली में शादी का छल्ला पहनाऊँगा। हमारे सारे अपने हमारे साथ ख़ुशियाँ मनाएँगे। पगली! तू रोती क्यूँ है? मैं हूँ न तेरे साथ।” कहते हुए उसने सलीना के होंठों को हलके से चूम लिया।
”पर… पर मैं तुझे कभी बच्चा नहीं दे पाऊँगी…,” कहते हुए सलीना तकिए में मुँह गड़ाकर ज़ार-ज़ार रोने लगी।
”सल्लो,” बोखारी ने भरे गले से कहा, ”तू फ़िकर क्यूँ करती है। नर्स ने मुझे सब कुछ बता दिया है… तू मत रो अपने अधूरेपन पर। देख! मैं ही कहाँ पूरा रह गया हूँ… मेरी दूसरी किडनी बुरी तरह इन्फ़ेक्टेड हो गई है। मैं… मैं भी कहाँ पूरा मर्द रह पाया हूँ।” कहते-कहते बोखारी का गला जो रुँधा तो वह थोड़ी देर तक चुप आँसुओं को अंदर-अंदर घूँटता रहा फिर बोला, ”मैं हूँ न तेरे लिए और तू है न मेरे लिए… फिर हम दोनों जैसे भी हैं, हैं तो न, एक दूसरे के लिए…।”