सच्ची मित्रता

06-12-2014

सच्ची मित्रता

रमेश ‘आचार्य’

गर्मियों की छुट्टियों में मानव पहली बार अपने गाँव आया था। वह तेरह साल का था और आठवीं कक्षा में पढ़ता था। गाँव में उसके दादा-दादी रहते थे। उसे महानगर की अपेक्षा गाँव का वातावरण बहुत पसंद आया। उसने महसूस किया कि गाँव के लोग बहुत मिलनसार और मददगार थे। उसके दादाजी का सब लोग बहुत आदर करते थे। दादाजी उसे सुबह-शाम सैर पर ले जाते और पेड़-पौधों व खेती के नवाचारी ज्ञान के बारे में बताते और वह उनकी बातें ध्यानपूर्वक सुनता था। उसे पहली बार किताबी ज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान में अन्तर मालूम हुआ। कुछ ही दिनों में उसके बहुत-से मित्र बन गए जिनमें भोलू से उसकी अच्छी मित्रता हो गई। भोलू उसकी उम्र का था और उसके पड़ोस में रहता था। दोपहर में सभी बच्चे मानव के आँगन में इकट्ठा हो जाते और तरह-तरह के खेल खेलते थे। मानव से वे शहर की नर्इ्र-नई चीज़ों के बारे में पूछते और अपने गाँव के बारे में बताते थे।

एक दिन मानव आँगन में बैठा अपने स्कूल का गृह-कार्य कर रहा था। दादा-दादी किसी काम से बाहर गए थे। अचानक उसे भोलू के घर से छोटे बच्चे की ज़ोर-ज़ोर से रोने की आवाज़ें सुनाई दीं। वह तुरंत भोलू के घर गया और देखा कि उसकी माँ उसके छोटे भाई गोलू को गोद में बिठाए चुप करा रही थी, लेकिन गोलू का रोना थमने को ही नहीं आ रहा था। वह बहुत चिंतित दिखाई दे रही थी। उसने पूछा, "चाची गोलू को क्या हो गया? यह इतनी ज़ोर-ज़ोर से क्यों रो रहा है?"

"बेटा कल रात से इसका बदन तप रहा है। भोलू और उसके पिता भी खेती के काम से तीन दिन के लिए दूर के गाँव गए हुए हैं। मेरा तो जी बहुत घबरा रहा है," वह रोते हुए बोली।

"चाची आप बिलकुल चिंता न करें। आप तैयार हो जाओ, हम अभी इसे डॉक्टर के पास ले जाएँगे," ऐसा कहकर मानव तेज़ी से अपने घर की ओर गया और अपनी गुल्लक से सौ रुपये निकालकर वापस आ गया। "चलिए चाची, अब देर मत करो," उसने गोलू को उठाया और बाहर निकल आया।

गाँव से डिस्पेंसरी तक का रास्ता लगभग तीन किलोमीटर था, लेकिन मानव बिना थके बच्चे को उठाए चल रहा था। जब वे डिस्पेंसरी पहुँचे तो डॉक्टर साहब भी जाने की तैयारी कर रहे थे। मानव उनके पास गया और बच्चे की तकलीफ के बारे में बताया। उसकी बातों और साहस देखकर डॉक्टर को भी आश्चर्य हुआ। उन्होंने कंपाउडर से डिस्पेंसरी खोलने को कहा।

डॉक्टर ने बच्चे की अच्छी तरह से जाँच की और कहा कि इसे वायरल हुआ है। लेकिन घबराने की बात नहीं, आप इसे ठीक समय पर ले आए अन्यथा तबियत और ज़्यादा बिगड़ सकती थी। उन्होंने मानव से सिरप और इंजेक्शन लाने को कहा। डिस्पेंसरी में ये दवाएँ ख़त्म हो गई थी। मानव तुरंत पास के मेडिकल स्टोर में गया और दवा ले आया।

डॉक्टर ने बच्चे को इंजेक्शन दिया और कुछ देर बाद दवा पिलाई। वे करीब एक घण्टे तक बाहर बैठे रहे। डॉक्टर ने कहा कि अब बच्चे की हालत सामान्य है, कल तक इसका बुखार उतर जाएगा, लेकिन इसे यह दवा दिन में तीन बार ज़रूर पिलाते रहना। मानव ने बच्चे को उठाते हुए, डॉक्टर का धन्यवाद किया और घर को चल दिए। मानव ने गोलू को नियम से दवा पिलाई। जब तीसरे .दिन सुबह वह भोलू के घर गया तो भोलू की माताजी ने बताया कि बेटा अब इसका बुखार उतर गया है। यह सुनकर वह बहुत ख़ुश हुआ।

शाम को भोलू मानव के पास गया और दोनों सैर करने चल पड़े। वे बातें करते-करते टहल रहे थे। तभी मानव बोला, "भोलू अब मेरी छुट्टियाँ समाप्त होने वाली है और मुझे शहर जाना होगा, लेकिन मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी। तुम जैसा दोस्त पाकर मुझे बहुत खुशी हो रही है।"

"तुम ठीक कहते हो, मित्र तो बहुत होते हैं मानव, लेकिन सच्ची मित्रता क्या होती है, यह मैंने तुमसे मिलकर जाना। मैं तुम्हें आजीवन याद रखूँगा," ऐसा कहकर भोलू उसके गले लग गया।

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