सावन (निलेश जोशी 'विनायका')

15-07-2020

सावन (निलेश जोशी 'विनायका')

निलेश जोशी 'विनायका' (अंक: 160, जुलाई द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

आज रात जब सावन बरसा
 भीगी धरती तन मन सारा
   असमंजस में बैठा हूँ कब से
     सावन बरसा या प्यार तुम्हारा।


घुमड़ घुमड़ घिर आए मेघा
  गर्जन करते घोर गगन
    कोयल बोले सावन के सुर 
      म्याऊं म्याऊं में मोर मगन।


बहका बहका सावन आया
  खुमारी बूँदों पर छाई
   भँवरें चहक रहे बागों में
    डाली पर है कलियाँ आई।


अलबेला मौसम झूलों का
  हरियाली धरती मनभावन
   निखरा यौवन बिरहन का
    तन में आग लगाता सावन।


भीगें हम तुम इस सावन में
  सुखद पल सौभाग्य हमारा
   जाने कब बरसेगा सावन
    दिल की बातों को स्वीकारा।


वर्षा के प्रिय स्वर उर में करते
  प्रणय निवेदन के सुख गायन
   टप टप झरती बूंदे कुछ कहती
    खुले रहे अब सब वातायन।

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