रूममेट
डॉ. रचना शर्मा
राधिका ने विश्वविद्यालय में सहायक आचार्य के पद पर ज्वाइन किया। विश्वविद्यालय घर से दूर होने के कारण उसे विश्वविद्यालय कैंपस में ही रहना पड़ा। लेकिन विश्वविद्यालय में शर्त रखी गई कि प्रत्येक रूम में दो सदस्य रहेंगे। राधिका की रूममेट मोना थी। मोना को बिल्कुल भी किसी के साथ रहना पसंद नहीं था। लेकिन मजबूरी थी . . .
मोना हमेशा राधिका को हर बात पर टोकती रहती, लेकिन राधिका ने कभी बुरा नहीं माना। मोना की विश्वविद्यालय के अधिकारियों तक पहुँच थी, इसका उसको बहुत अभिमान था। वह प्रत्येक छोटी-छोटी बात अधिकारियों को बताती रहती थी। मोना का व्यवहार राधिका के प्रति अच्छा नहीं था। रूम में भी वह अजनबियों जैसा व्यवहार करती थी। मोना कभी भी उसको नहीं बुलाती थी, बल्कि राधिका ही उससे बात करती थी। विश्वविद्यालय हॉस्टल में सभी रूममेट अपनी-अपनी रूममेट के साथ खाना खाने जातीं थीं। अच्छा भी लगता था! लेकिन मोना अपने हिसाब से ही जाती थी। मोना का अकेले रहना उसका स्वभाव था, शायद उसे यही पसंद था। मोना का व्यवहार प्रत्येक बात में सामने वाले को नीचा दिखाना और बात-बात में टोकना था।
रूम में उन्हें एक कपड़े सुखाने वाला स्टैंड मिला। हर दम मोना के ही कपड़ों से भरा रहता था, गीले हों, सूखे हो! हमेशा स्टैंड पर उसी के ही कपड़े रहते थे। उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था। राधिका को कपड़े सुखाने में भी एडजस्ट करना पड़ता था। साथ वाले रूम से या बाहर पड़े कपड़े सुखाने वाले स्टैंड पर ही अपने कपड़े सुखाती थी।
राधिका धार्मिक प्रवृत्ति की थी, पूजा पाठ में विश्वास रखती थी, इसलिए कमरे का झाड़ू वह स्वयं लगाती थी। राधिका सुबह उठकर सूरज भगवान को जल देकर आरती या भजन लगातीं, तो मोना को वह भी पसंद नहीं थे। इन भजनों के लिए भी मोना कहती थी, “मुझे माइग्रेन है, इसे बंद कर दीजिए या आप ईयर फोन लगाकर सुन लीजिए।”
राधिका ने इस बात के लिए कभी भी उसे कुछ नहीं बोला था। मोना हमेशा रूम में मोबाइल से ज़ोर-ज़ोर से बातें करती थी, गाने भी सुनती थी, तब उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था। मोना दिखाने में तो सफ़ाई के प्रति बहुत ही गंभीर थी, लेकिन यह सब बातें थी। रूम में उसका यही हाल था। ना तो उसे सफ़ाई पसंद थी, यह मात्र दिखावा था। अक्सर राधिका ने अपने रूम में देखा कि मोना कुछ भी खाकर छिलके वग़ैरा अपने टेबल पर ही रख देती है। उसमें कीड़े चलते रहते हैं, जब उसे याद आता, तब वह उसे उठाकर फेंकती है।
मोना ने कभी भी झाड़ू नहीं लगाया क्योंकि वह कहती, “मुझे सर्वाइकल है, इसलिए मुझे झाड़ू नहीं लगेगा।”
राधिका मन में सोचती, शायद इसको एहसास हो जाएगा। लेकिन नहीं, वह हमेशा यही कहती, “आप घर गए थे, तब मैंने पीछे से झाड़ू-पौछा लगाया था।”
लेकिन रूम में कभी नहीं लगता था कि झाड़ू भी लगी थी।
राधिका घर से कोई चीज़ लेकर आती थी, मिल बाँटकर खाती थी। धीरे-धीरे उसका असर मोना पर भी हुआ। वह भी कोई चीज़ होती तो राधिका को शेयर करती थी। इस बात की राधिका को ख़ुशी थी कि मेरी रूम पार्टनर थोड़ा-बहुत तो मेरे बारे में अच्छा सोचती है।
शनिवार का दिन था। राधिका और मोना को घर जाना था। राधिका और मोना एक ही शहर के थे। लेकिन एक बस में जाने पर भी अलग-अलग सीट पर बैठे और फिर से अजनबी हो गए थे। जैसे एक दूसरे को जानते भी नहीं है। राधिका का व्यवहार मिलनसार था। राधिका ने सोचा, “मोना अच्छी है, शायद वह मुझे पसंद नहीं करती। मुझे ऐसा लग रहा है।”
वापस आने पर राधिका, मोना से पहले अपने रूम पर आ गई थी। देखा कि रूम में बाथरूम की लाइट और गीजर चल रहा था। राधिका ने उसे तुरंत बंद किया और मोना को कुछ नहीं बोला था। इस बात को दो-तीन दिन बीत गए थे। राधिका रोज़ देखती, मोना हमेशा लाइट और पंखे चलते ही छोड़ जाती थी। आख़िर में राधिका से रहा नहीं गया। उसने मोना से कहा, “आप लाइट जला कर छोड़ देती हो। मैंने बहुत बार देखा है। वार्डन अगर अपने रूम का ऑब्ज़रवेशन करने आएगी, तो हमें दोनों को डाँट पड़ेगी।”
मोना भी ग़ुस्से से बोली, “हम तो घर पर भी ऐसे ही छोड़ देते हैं, हमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। यहाँ बिल नहीं आता है, सोलर सिस्टम है, 200 यूनिट फ़्री होती है, छोड़ दी तो छोड़ दी। अगर कोई ऑब्ज़रवेशन करने आएगा, तो मैं अपने आप बात कर लूँगी। मैडम, आपको मेरे साथ नहीं रहना पसंद है, तो आप रूम चेंज कर लीजिए।”
राधिका ने बात को ज़्यादा बढ़ावा नहीं दिया था। बात वही शांत हो गई थी। शाम के समय विश्वविद्यालय के अधिकारी पार्क में घूम रहे थे। राधिका वहीं से जा रही थी। अधिकारी जी ने पूछा, “कैसा चल रहा है, मन लग गया क्या?”
राधिका से रहा नहीं गया। उसने चार लोगों के बीच में सारी बात बोल दी थी।
राधिका ने कहा, “सर, मेरी रूम पार्टनर कहती हैं कि आप रूम अलग कर लीजिए। वह शुरू से यही चाहती थी कि मुझे अकेले रहने के लिए रूम मिल जाए।”
विश्वविद्यालय अधिकारी ने कहा, “अगर आपकी नहीं बनती तो आप एक एप्लीकेशन रजिस्ट्रार के नाम लिखिए और अपना रूम चेंज कर लीजिए।”
कहते ही राधिका का मन बेचैन होने लगा और मन ही मन उसे अफ़सोस भी हो रहा था। राधिका को उस समय दिल से दुःख हुआ। वह ऐसा क्यों करती है? मैं मोना को क्यों नहीं पसंद हूँ? राधिका ने सोचा कि सर को ऐसे ही कह दिया। राधिका ने रूम पर आकर सोचा, “अगर मैं एप्लीकेशन लिखती हूँ तो यह अच्छी बात नहीं है। हम बच्चे नहीं हैं! जो झगड़ा करते हुए किसी की हँसी का पात्र बनें। इस तरह किसी के चरित्र के बारे में लिखना और वह दूसरा कोई पढ़े और मज़ाक़ बनाए।”
राधिका ने सब कुछ नज़रअंदाज़ कर दिया और फिर से उसी के साथ रहने लग गई थी। दोनों की आपस में कोई ख़ास बातचीत नहीं होती थी। एक दिन राधिका को बस से घर जाना था। राधिका ने मोना से कंडक्टर के कांटेक्ट नंबर माँगे थे। मोना ने राधिका को कांटेक्ट नंबर तो दे दिए, लेकिन कहा, “अभी मत फोन करो। जब बस का टाइम हो, तब फोन करना।”
राधिका ने उसको धन्यवाद कहा। राधिका को ख़ुशी हुई कि मोना ने उसकी सहायता की थी। विश्वविद्यालय की छुट्टी होने पर राधिका बस स्टैंड पहुँची। बस के इंतज़ार में राधिका ने फोन निकाल कर वह नंबर डायल किया लेकिन वह नंबर ग़लत था . . . राधिका को बहुत अफ़सोस हुआ, शायद मैंने ग़लत डिजिट टाइप किए थे। राधिका ने अपनी ही ग़लती मानी और मोना को कॉल किया और कहा, “मोना, मेरी बस निकल जाएगी। आप मुझे फोन नंबर व्हाट्सएप कर दीजिए। शायद मैंने ग़लत नंबर टाइप कर दिए थे, वह फोन मिल नहीं रहा है।”
लेकिन मोना ने कहा, “मेरे पास तो यही नंबर है जो मैंने दिया है। आप उसी को ही ट्राई करो। नहीं मिल रहा तो मैं क्या करूँ!”
बस बाईपास होकर निकल गई थी। राधिका मन ही मन में बहुत दुःख हुआ था। दूसरी बस पकड़ कर वह अपने घर को रवाना हो गई थी। मन में यह भी डर था, रात होने लगी थी। मन में बार-बार यही ख़्याल आ रहा था, “अगर वह बस मिल जाती तो समय पर घर पहुँच जाती।” राधिका को यह बात पता थी कि कंडक्टर का नंबर तो मोना के पास है। उसको कई बार बस रोकने के लिए बोला करती थी। राधिका के मन में बहुत ग्लानि हो रही थी। ”ऐसा लोग क्यों कर देते हैं और एक औरत की औरत ही दुश्मन होती है,” यह आज एहसास हो रहा था कि कोई किसी की मदद नहीं करता, कोई किसी का नहीं होता . . .
राधिका का मन कभी सही विचारों को गति दे रहा था, तो कभी ग़लत विचारों को गति दे रहा था। ख़ैर! घर पहुँच कर सारी बात भुलाकर परिवार के साथ दो दिन अच्छी तरह से कटे। विश्वविद्यालय आने का मन ही नहीं कर रहा था लेकिन आना तो पड़ेगा ही, कुछ पाने के लिए, कुछ खोना ही पड़ता है।
राधिका और मोना को रहते हुए 4 महीने हो गए थे। विश्वविद्यालय में खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। टीमें आनी थीं, उनके भी आवास की व्यवस्था करनी थी। विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने वार्डन को कहा, “आप मोना का कमरा शिफ़्ट कर दीजिए।”
हॉस्टल वार्डन ने मोना को बुलाया और रूम चेंज करने के लिए कहा। मोना को वार्डन की बातें अच्छी नहीं लगीं, वह वार्डन को ख़ूब भला-बुरा, मान-सम्मान जैसे उपदेश सुना कर चली गई थी।
राधिका भी वहीं मौजूद थी। राधिका ने वार्डन मैम से कहा, “अगर यह रूम चेंज नहीं करना चाहती है तो मुझे शिफ़्ट कर दीजिए।”
वार्डन मैम ने कहा, “मुझे पीछे से ऑर्डर है, मैं आपको शिफ़्ट नहीं कर सकती हूँ।”
शाम को विश्वविद्यालय की छुट्टी होने के बाद रूम में जाने के बाद भी मोना ने मुझे बहुत सुनाया था। उसने कहा, “अगर मैं रूम चेंज करूँगी तो मेरा मान सम्मान नीचा हो जाएगा।”
मोना ने राधिका से कहा, “मैडम आपने यह अच्छा नहीं किया, आपने पहले मेरी शिकायत सर से की। अगर आप मुझे बता देतीं तो मैं भी अपना पक्ष रख सकती थी। उन्होंने चार लोगों के बीच मुझे यह कहा, ‘आपकी शिकायत आई है,’ इससे मेरे मान सम्मान को ठेस लगी है और मेरी आज तक कोई शिकायत नहीं हुई थी, लेकिन आपने ग़लत किया।”
राधिका ने मोना से कहा, “मैडम मैं कोई स्पेशल आपकी शिकायत लेकर नहीं गई, मुझसे पूछा गया था, इसलिए मैंने बताया, जैसा आपका व्यवहार है, उसके बारे में बताया, जो मुझे लगा वह मैंने कह दिया, अगर तुम रूम नहीं चेंज करना चाहती तो मैं कर लेती हूँ।”
मोना ने कहा, “रहने दो! मैडम मैं अपनी मैटर को अपने आप सॉल्व कर लूँगी, आपके बीच में आने की कोई ज़रूरत नहीं है, लेकिन मैं अपना रूम नहीं छोड़ना चाहती हूँ।”
राधिका ने कहा, “ठीक है।”
आख़िर राधिका ने सोचा क्यों ना मैं ही चली जाऊँ, क्योंकि अब हमारी आपस में नहीं निभने वाली है, राधिका ने अधिकारी को फोन किया और अपना रूम चेंज कर लिया, मोना अब अकेली ख़ुशी-ख़ुशी अपने रूम में रहने लग गई, जो वह चाहती थी, उसका मक़सद पूरा हुआ।
एक तरफ़ राधिका को भी बहुत अच्छी रूम पार्टनर मिल गई, जिसे मान सम्मान की क़द्र भी थी, दोनों के आपस में विचार भी मिलते थे।
अंत में राधिका के मन में यह विचार आए और वह सोचने लगी, “इंसान अपनी बुराई छुपा लेता है, हाँ! मेरे में भी बुराई होगी, मैंने उसको सुना, उसके साथ सहन किया, मैंने जैसे-जैसे उसने कहा, उसकी बातों को पूरा करने की कोशिश की, शायद! यही मेरा क़ुसूर है।”
मोना के विचार बार-बार उसके ज़ेहन में आने लगे थे। मोना ने कहा था कि ‘अगर मेरे लिए कोई सिर झुकाएगा, मैं भी उसके प्रति उतना ही आदर भाव रखूँगी और उसका मान सम्मान करूँगी।’
लेकिन यह भाव उसके शब्दों में थे, वास्तविकता में कभी नहीं नज़र आए। राधिका ने महसूस किया और मन मस्तिष्क में कुछ विचार आने लगे और वह सोचने लगी, ‘तभी तो कहा जाता है कि दो इंसानों के अगर विचार मिलते हों तो सब कुछ सही है और अगर नहीं मिलते तो उसमें कुछ अनबन शुरू हो जाती है।’
कहावत तो सुनी ही होगी कि “पांचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं।” यह कहावत हमारे आसपास मौजूद माहौल पर भी लागू होती है। कुछ लोगों को समझना बड़ा आसान होता है, पहली मुलाक़ात में ही हम उनके हावभाव से पता लगा लेते हैं कि वह किस प्रकार की सोच रखते हैं।
राधिका के मन में विचार आया कि “फ़र्स्ट इंप्रेशन इज़ द लास्ट इंप्रेशन” अंग्रेज़ी की यह कहावत काफ़ी हद तक सही भी हो सकती है, लेकिन पहली मुलाक़ात में हम किसी को नहीं समझ सकते। सामने वाले को समझने के लिए ख़ुद को वक़्त देना भी ज़रूरी है।
जिसे मान सम्मान की क़द्र भी हो, दोनों के आपस में विचार भी मिलते हों तो दोस्ती अच्छी निभती है। पहली छाप ही, आख़िरी छाप होती है।
1 टिप्पणियाँ
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You write very Nice. Your emotions are really good.