रिश्ते ख़त्म नहीं होते . . .
संकल्प देव शर्माकहते हैं—
दिली रिश्ते कभी ख़त्म नहीं होते!
अगर होते भी हैं
तो कम से कम
एक बचकाने बहाने के साथ
या फिर
बेतुकी-सी तू-तू मैं-मैं के बीच
. . .
फिर कभी ना मानने के लिए . . .
तुम कभी मुँह मोड़ना चाहो
तो ये गुज़ारिश है
यों ही छोड़ जाना . . .
वो अधूरा आलिंगन
और
वह सवाल भी
जो पूछा था मैंने तुमसे कभी
छोड़ जाना यों ही
उसे
छटपटाते हुए . . .
वो आधा उगा सूरज
और
आधा डूबा हुआ चाँद
जो
संगी थे हमारे
छोड़ देना उन्हें भी
उनके अधूरेपन के पूरे सच के साथ
उम्र भर के लिए . . .
और हाँ
वो अधूरी-सी मुलाक़ात
जो मुकम्मल होनी थी
अब न होगी कभी
. . .
मत सोचना
ऐसी कोई बेतुकी बात
और
मत रूठना
किसी बचकाने से बहाने पर
कभी ना मानने के लिए॥
मेरी जान!
जानती हो तुम भी
मानता हूँ मैं भी . . .
दिली रिश्ते कभी ख़त्म नहीं होते
और मैं
इसे झुठलाना नहीं चाहता . . .