रीति, कुरीति से आगे

15-06-2024

रीति, कुरीति से आगे

जैस्मिन शर्मा (अंक: 255, जून द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

रीति, कुरीति से आगे
तृष्णा और मोह से आगे 
अहंकार से आगे 
एक सुंदरवन! 
जहाँ ना प्रकाश है ना अन्धकार! 
एक अनंत फैली हुई छाँव, 
असीमित, अधिकारमयी। 
पार करूँ तो धूप लागे, 
ना पार करूँ तो कित जाऊँ, 
मन का भेद बताऊँ, 
हृदय चीर दिखाऊँ, 
जहाँ दृष्टि पड़ी, वहीं मैं खड़ी पाऊँ। 
सुंदरवन सा ये मेरा मन, 
और संसार की आपाधापी, 
ख़ुशी भी है, आनंद भी! 
ऋतुएँ सी इसका ठहराव, 
मरुस्थल पे पानी जैसा इसका बहाव, 
काल्पनिक कहानी है। 
असाध्य करनी, 
सपुष्पक वनस्पति सा! 

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