राज़दान राज़ - कतआ - 01
राज़दान ’राज़’बुढ़ापे में बुढ़ापे के दिनों को कोसने वालो
बुढ़ापा एक नेमत है के जो सबको नहीं मिलती
ख़ुदाई की समझ आती है जो जाकर बुढ़ापे में
कहो कुछ भी जवानी तक किसी को वो नहीं मिलती
बुढ़ापे में बुढ़ापे के दिनों को कोसने वालो
बुढ़ापा एक नेमत है के जो सबको नहीं मिलती
ख़ुदाई की समझ आती है जो जाकर बुढ़ापे में
कहो कुछ भी जवानी तक किसी को वो नहीं मिलती