राष्ट्र पथ
कुणाल बरडियाहोकर अडिग, निश्छल सदा,
बढ़ते रहो राष्ट्र पथ पर
चाहे अर्पण हो तन मन धन,
पर रुकना ना कभी घबराकर
राष्ट्र पथ कठिनाइयों का होगा अवश्य,
यह ठान लो मन में
कुछ दुश्मन सीमाओं पर होंगे,
कुछ जयचंद होंगे अगल बगल में
विभाजन, विखंडन, मतांतरण पर
होगा आतुर विपक्ष सारा और
इतिहास झुकाने में लगा होगा
बुद्धिजीवियों का तंत्र न्यारा
तब यह याद रख कर
निडर बनना और गर्व करना कि
विरोधी ताक़्तों से पवित्र है राष्ट्रीयता अपनी
वीरों के बलिदान से सुसज्जित है संस्कृति अपनी
महज़बी नफ़रत से ऊँची,
अपनी "सर्व पंथ सम्भाव" की धारा
"वसुधेव कुटुंबकम" तो अपना ही
विश्व को सन्देश है प्यारा
अब ना डगमगाएँ राष्ट्र पथ पर अपने क़दम ज़रा भी
इस विश्वास को सुदृढ़ करने के लिए यह प्रण लें अभी
कि अपने ही जीवन काल में
भारत की अखंडता साकार करेंगे
ना लड़ाई, ना क़त्लेआम,
मात्र सत्य का व्याख्यान करेंगे
मज़हब के नाम पर
विभाजन हुए होंगे कभी किसी काल में
वैभव फैला था ईरान से म्यांमार,
हम उस काल का गुणगान करेंगे
“राष्ट्र अखंड, राष्ट्रीयता प्रथम,
राष्ट्र ही जीवन, राष्ट्र ही धर्म,
सात्विक, सत्य सनातन,
उस राष्ट्र पथ पर मिलकर चलें हम”
अब बस यही होगा हर दिल में नारा,
यही भाव गूँजेगा -
हर शहर, ग्राम, नुक्कड़, गलियारा”
मित्रो, याद रखना कि
होकर अडिग निश्छल सदा,
बढ़ते रहो राष्ट्र पथ पर
चाहे अर्पण हो तन मन धन,
पर रुकना ना कभी घबराकर