क़िस्मत के मोती
डॉ. राम कुमार माथुरतुम्हारे हमारे
उसके इसके
न जाने कौन कौन
किस किसके
हिस्से के
वो जो टपकने वाले मोती थे
इस शहर की सफ़ेद दुकान पर बिकते थे
बिकते थे सभी वो मोती
जो कभी सीपों के अंदर होते थे
नहीं बिके तो वो जो
गर्म जेबों, सिर के ताज वाले थे
नहीं बिके वो भी जो
नन्हे हाथों के खिलौने थे।
अलग अलग तक़दीर के
अलग अलग मोती
तेरे, मेरे
इसके, उसके
न जाने
किस किसके
वो पनीले
वो सफ़ेद मोती।
1 टिप्पणियाँ
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