पुर्सा
रज़ाउल जब्बारपुर्सा
रज़ाउल जब्बार
“दिमाग़ की सतह पर माज़ी की कुछ उदास यादें रिसते हुए ज़ख़्म की तरह उभरती हैं, आपके नौजवान लड़के लिस्टर की मौत की ख़बर ने मुझे बदहाल कर दिया है और इसीसे बाविस्ता बहुत-सी यादों की वजह से मैं बेइन्तहा उदास हूँ। इस अचानक हादसे की याद से मेरा दिमाग़ माऊफ़ हो गया है। मिसेज़ ऐरन, मुझे आपके ग़म का अन्दाज़ा है। जितना ग़म आपको है, उतना ही ग़मगीन मैं भी हूँ क्यों लिस्टर मुझे बहुत अज़ीज़ था। ज़िन्दगी के मैदान में और खेल के मैदान में लिस्टर बड़ा प्यारा खिलाड़ी था।”
डॉक्टर अनिल ने मिसेज़ ऐरन के दरवाज़े का बेल बजाने से पहले पुर्सा के लिए तैयार किए हुए जुम्ले को आहिस्ता से दोहराया। उनकी ज़ुबान में लुकनन थी। इसकी वजह से कभी-कभी वह एक लफ़्ज़ कहने के बजाय कुछ और ही कह जाते थे और कभी किसी लफ़्ज़ पर उनकी ज़बान इस बुरी तरह अटक जाती थी कि आसपास में बैठे हुए लोग कभी हमदर्दी की ख़ातिर लेकिन अक्सर बेज़ार होकर अपने अन्दाज़े के मुताबिक़ अपनी ही ज़बान में मुमकिना अल्फ़ाज़ रखकर जुम्ले को मजबूरन मुकम्मिल कर दिया करते थे। तब डॉक्टर अनिल को बड़ी शरमिंदगी महसूस होती थी। उन्हें यों लगता था जैसे गाड़ीवान की एहतीयात के बावजूद एक बैलगाड़ी के पहिये राह की कीचड़ में फँस गए हैं, और राहगीर उसे धक्के मारकार कीचड़ से निकाल रहे हैं।
अपने बनाए हुए जुम्ले का रिहर्सल कर लेने के बाद डॉक्टर अनिल ने कॉल बेल को दबा दिया और मिसेज़ ऐरन के ग़मगीन चेहरे को देखने की इच्छा और बढ़ गई। उन्होंने सोचा कि इस बेचारी बूढ़ी औरत की ज़िन्दगी में कितना बड़ा हादसा आया है। इनका सहारा बस यह एक ही लड़का था। सेहतमन्द, चुस्त व चालाक और खेल के मैदान का मशहूर खिलाड़ी! अस्पताल का कोई पुराना रोगी मर जाता है तो इतना दुःख नहीं होता, लेकिन खेल के मैदान का उछलता-कूदता छलावा एकाएक छुप जाता है तो बहुत-सी आँखें नमनाक हो जाती हैं। बहुत दिल उदास हो जाते हैं। दो-तीन मिनट बाद दरवाज़ा खुला और अन्दर से मिसेज़ ऐरन की आवाज़ आई, “अन्दर आ जाओ मेरे बच्चे। ख़ुशामदीद! मैं तुम्हार ही इन्तज़ार कर रही थी।”
मिसेज़ ऐरन की शक्ल नज़र नहीं आई लेकिन उनकी इसी आवाज़ को सुनकर डॉक्टर अनिल ने सोचा कि कहीं लिस्टर के ग़म में मिसेज़ ऐरन पागल तो नहीं हो गई हैं! उन्होंने दरवाज़े में से आवाज़ लगाई, “मैं डॉक्टर अनिल हूँ, मिसेज़ ऐरन, मैं अन्दर आऊँ क्या?”
“ओह! डॉक्टर अनिल हैं। अन्दर आइए डॉक्टर!” मिसेज़ ऐरन सामने आ गईं।
मिसेज़ ऐरन का चेहरा हशाश बशाश था। अन्दरूनी कमरे में से संगीत की हलकी-सी तान सुनाई दे रही थी। मिसेज़ ऐरन की मुस्कुराहट का जवाब डॉक्टर अनिल ने भी मुस्कुराहट से दिया और कहा, “आज और अभी शहर में आया हूँ। बहुत दिनों के बाद आया हूँ। मैंने बहुत दिनों से सोचकर रखा था कि शहर आऊँगा तो सबसे पहले आप ही से मिलूँगा। इसीलिए इतनी सुबह चला आया।”
“आपने अच्छा किया,” मिसेज़ ऐरन ने कहा, “आवाज़ को सुनकर समझी थी, मेरा बेटा आया है। ख़ैर वह भी अब चन्द मिनटों में आता ही होगा। तब मैं ख़्वाहिश करूँगी डॉक्टर कि आप दोनों मेरे यहाँ एक साथ नाश्ता करें।”
डॉक्टर अनिल का सर चकराने लगा। कहीं लिस्टर की मौत की ख़बर ग़लत तो नहीं थी? लेकिन डॉक्टर अनिल ने सभी अख़बारों में इस ख़बर को पढ़ा था। शहर को हर रोज़ जाने वाले लोगों ने इस बात की तस्दीक़ की थी कि लिस्टर को एक भारी लारी ने अचानक कुचल दिया था और वह वहीं पर मर गया। वह खेल के मैदान से लौट रहा था। बाहर के देश से आई हुई एक फ़ुटबाल टीम को उसकी लीडरशिप में खेे हुए उसके साथियों ने हरा दिया था। लिस्टर ने मैदान में अपने जौहर दिखाए थे। उसकी हर अदा पर बेशुमार तालियाँ बजीं थीं। लेकिन खेल के मैदान के बाहर मौत उस पर छा जाने के लिए मुन्तज़िर खड़ी थी और लिस्टर ज़िन्दगी के मैदान में शिकस्त खा गया। लिस्टर की मौत, ज़िन्दगी की बोसीदगी की मंज़ोद एक बहुत बड़ी मिसाल थी और इस हादसे पर मज़बूत दिल के लोग भी आह भरकर रह गए थे। लेकिन मिसेज़ ऐरन की बातें सुनकर और उनके हशाशबशाश चेहरे के देखकर डॉक्टर अनिल फ़िकरमंद हो गए थे कि उन्हें पुर्सा देना चाहिए या नहीं। अपनी बात के कहने के लिए उन्हें एक तरकीब सूझी।
दीवार पर टँगी हुई लिस्टर की एक तस्वीर थी जो किसी मुसव्विर के हाथों की शाहकार थी। डॉक्टर अनिल ने उसकी तरफ़ उँगली उठाते हुए कहा, “इस तस्वीर में लिस्टर की आँखें कितनी जानदार हैं। तस्वीर को देख रहा हूँ तो यूँ लग रहा है कि लिस्टर मेरे सामने है और मो-मो . . .।” डॉक्टर अनिल के ज़ुबान की लुफनत ने उन्हें आगे बढ़ने ना दिया और मिसेज़ ऐरन ने जुम्ला मुकम्मिल नहीं किया। वह बाहर दरवाज़े की तरफ़ ‘मेरा बच्चा’ कहकर भागीं क्योंकि इसी समय कॉल बेल की लतीफ़ आवाज़ गूँजी थी।
मिसेज़ ऐरन ने उस लड़के को अपने सीने से लगा लिया और दो-तीन प्यार लिए। उसका हाथ थामे वह कई क़िसम के मोहब्बत-भरे जुम्ले कहती हुई उसे टेबल की तरफ़ ले आईं और डॉक्टर अनिल से परिचय करवाते हुए कहने लगीं, “डॉक्टर, यह मेरा इकलौता लड़का है। इसकी निगाहें मेरी ज़िन्दगी-भर का सुकून हैं इसे जिस दिन नहीं देखती हूँ तो मेरा चैन गुम हो जाता है। अगले महीने यह बी.ए. का इम्तिहान देगा। तब मैं इसे बहुत अच्छा खिलाड़ी बनाऊँगी।” फिर डॉक्टर अनिल की जानिब इशारा करके उन्होंने अपने बच्चे से कहा, “यह डॉक्टर अनिल हैं। अपने शहर में सिविल सर्जन थे और हमारे बहुत पुराने ख़ानदानी दोस्त। रिटायर्ड हो गए तो डॉक्टर अनिल अब हमें भूल गए हैं। हमें छोड़कर गाँव में बस गए।”
डॉक्टर अनिल जवाब में मुस्कुरा दिए और इस आए हुए लड़के से हाथ मिलाया। मिसेज़ ऐरन यह कहती हुई रसोई में जाने लगीं, “आप लोग बातें कीजिए, मैं अभी नाश्ता परोसती हूँ।”
मिसेज़ ऐरन चली गईं तो डॉक्टर अनिल ने पूछा, “आपका नाम?”
“जॉर्ज,” उस लड़के ने जवाब दिया।
“लेकिन मिसेज़ ऐरन के लड़के का नाम लिस्टर था,” डॉक्टर अनिल ने डरते-डरते आहिस्ता से कहा।
“हाँ,” जॉर्ज ने मुस्कुराकर कहा, “लिस्टर की मौत के बाद मैं इस घर में आया हूँ। आप नहीं जानते क्या कि मैं कैसे आया?”
“नहीं, नहीं जानता!” डॉक्टर अनिल ने जवाब दिया, “मुख़्तसरिन जल्दी से बता दो।”
“लिस्टर की मौत के हादसे ने इनके दिल पर ज़बरदस्त चोट दी। लकिन इनके होश सलामत थे। इन्होंने उन दिनों कहीं पढ़ लिया था कि अगर किसी के अज़ीज़ की मौत अचानक हो जाए तो चौबीस घंटों के अन्दर उस अज़ीज़ की आँखें दान के तौर पर किसी दूसरे को देकर उन आँखों को ज़िन्दा रखा जा सकता है। मिसेज़ ऐरन ने चौबीस घंटों के अन्दर ‘आई बैंक’ के फोन किया कि वह अपने बच्चे लिस्टर की आँखें दान के तौर पर देने के लिए तैयार हैं, ताकि इससे किसी अंधे आदमी को रोशनी मिले। लिस्टर की आँखें निकाल ली गईं थीं।”
“हाँ, मैंने यह बात भी अख़बार में पढ़ी थी।”
“इसके बाद मिसेज़ ऐरन ने मुझे चुना,” जार्ज ने आहिस्ता से कहा, “मैं देख नहीं सकता था। मेरा ऑपरेशन हुआ और लिस्टर की आँखें मुझमें डाल दी गईं हैं। मैं अब देख सकता हूँ। लिस्टर की आँखों से मैं मिसेज़ ऐरन को देखता हूँ तो इन्हें यों लगता है, जैसे लिस्टर इन्हें देख रहा है। यह आँखें आख़िर लिस्टर की ही तो हैं। यह मिसेज़ ऐरन के कारण मुझे बीनाई मिली। इसलिए मैंने इन्हें मम्मी बनाया है। हर रोज़ मैं इनके यहाँ नाश्ता करने के लिए आता हूँ। अपने हाथ से वह मुझे खिलाती हैं। मुझे आने में कभी देर हो जाती है तो वह बेक़रार हो जाती हैं। इसलिए हमेशा वक़्त पर आता हूँ या वक़्त से बहुत पहले। देर से कभी नहीं आया।”
“जॉर्ज!” रसोई से मिसेज़ ऐरन की मीठी सी आवाज़ आई, “तुम्हें देर तो नहीं हो रही है बेटा . . .”
“नहीं, मम्मी, नहीं!” जार्ज ने उसी मिठास से जवाब दिया।
डॉक्टर अनिल ने सोचा कि वह यहाँ पुर्सा देने आए थे लेकिन मिसेज़ ऐरन को पुर्सा देना बहुत मुश्किल है। अगर वह इस मक़सद के लिए अपना रटा हुआ जुम्ला दोहराएँगे तो कहीं न कहीं बड़े बेतुकेपन से उनकी ज़ुबान रुक जाएगी और अगर रुकेगी नहीं तो मिसेज़ ऐरन ज़रूर उसे रोक देंगी!