पूरी पृथ्वी धुरी का परिमाप!
वरुण सिंह गौतम
मैं, स्त्री मुझमें कोई अनजान-सी
अधर की गहराइयों में
उतरती है उत्तरी ध्रुव पर
केंद्रित रहती अंतरिक्ष की असीम ऊर्जा
जो किसी पुरुष को पुकारते हुए
आलिंगन में प्रेम की स्थिति की
गहराई भूपटल को चीरते हुए
फिर अंतरिक्ष को स्पर्श कर
पूरी पृथ्वी पर परिक्रमण किया हो
जैसे मानों ये प्रेम के प्रश्न बिन्दु पर
स्त्री पुरुष के हैं, पुरुष स्त्री में
अपूर्ण सम्पूर्ण में प्रकृति में हेर रहा
जैसे कुरूक्षेत्र के महासमर में रण
विकल बिलख कर अर्जुन सुभद्रा की कोख से
फिर वही अजय अभिमन्यु को हेर रहा
रतिक्रम के आलिंगन चरम-स्थितियों के प्रेम
पूरे ब्रह्मांड के नर-मादा को नवसृजन लिए
मानों महोच्चार कर रहा यानी तौल रहा
पूरी पृथ्वी धुरी का परिमाप!