प्रेम तुम में दिखा
नीतू झाकहते हैं! प्रेम की प्रतिरूप है स्त्री
मगर, मुझे तो प्रेम तुम में दिखा
जब चित्रकारी करती, कविताएँ लिखती
उसकी कलाओं को बिना समझाए समझ लेना
प्रेम के प्रथम रूप, निष्ठा और कर्तव्य से
एक पिता का पुत्री के लिए मित्र बनके रहना!
मुझे तो प्रेम तुम में दिखा . . .
मुझे तो प्रेम तुम में दिखा
आपस में लड़-झगड़ कर
रूठने के डर से कैसे मनाते रहना
कभी पिता, कभी मित्र के रूप सा दिखना
गुड़िया की आँखें निकाल कर
ग़लती स्वरूपा . . . . . .
अपने सारे खिलौनों को चुपचाप विदा देना!
मुझे तो प्रेम तुम में दिखा . . .
मुझे तो प्रेम तुम में दिखा
दोस्ती की हिफ़ाज़त और ढेर सारा फ़िक्र
कोई सम्बन्ध, कोई रिश्ता ना होते हुए भी
अपने मित्र से निःस्वार्थ प्रेम
उसकी छोटी-छोटी बातों पर हँसना
और उसकी छोटी-बड़ी दुःखों में संग देना!
मुझे तो प्रेम तुम में दिखा . . .
मुझे तो प्रेम तुम में दिखा
जो कुछ समय के प्रेम के लिए
उसे बरसों की तपस्या से निभाते रहा
ऐसे रूप में, जो,
प्रेम को प्रदर्शित करना तो दूर
उसके शब्द से भी वंचित रहा!
मुझे तो प्रेम तुम में दिखा . . .
मुझे तो प्रेम तुम में दिखा
एक ऐसे व्यक्ति के रूप में
जो सम्पूर्ण कष्टों को चुपचाप चुरा ले
जिसको जीवन में
आगमन के समय तक नहीं जानता
उस पर भी भरोसा और प्रेम करके
उसको प्रेम की प्रतिरूपी साँचों से सजा ले!
मुझे तो प्रेम तुम में दिखा . . .
मुझे तो प्रेम तुम में दिखा
किलकारियाँ मारते हुए
आँखों को गोल-गोल करके
ममता भरी आँखों से लगातार निहारते जाएँ जो
ऐसे रिश्ते में बाँध दे
जो प्रेम को परम से चरम की अनुभूति दिलाएँ!
मुझे तो प्रेम तुम में दिखा . . .
सारी अनुभूतियों ने मुझे वहाँ पहुँचाया
जहाँ प्रेम हर एक चीज़ में है
प्रतिरूप नहीं, कोई गणना-उपाधि नहीं
नहीं, तो, कहीं नहीं!
तुमने प्रेम मुझमें देखा!
मुझे तो प्रेम तुममें दिखा . . .!!