पहली बार
डॉ. संजय कुमार
बैलगाड़ी पर चढ़ कर,
पहली बार देखा गाँव।
खींच कुँए का ठंडा पानी,
पहली बार धोये पाँव।
सुबह-सवेरे घंटी बजती,
गाँव के विद्यालय में।
कीर्तन का स्वर गुंजित होता,
रोज़ शाम शिवालय में।
बिरजू काका के घर के आगे,
देखा टीला पुआल का।
नदी किनारे मुंडन होता,
ढेर लगता बाल का।
पहली बार चला पगडंडी
और खेतों की मेड़ों पर।
स्वाद चखा कच्ची अमिया का,
चढ़ा आम के पेड़ों पर।
दादा जी को देखा मैंने,
हुक्का पीते पहली बार।
छोटे-छोटे इन पेड़ों पर,
लदे पपीते पहली बार।
पहली बार देख रहा था,
फैली इतनी हरियाली।
मन को मेरे मोह रही थी,
उगते सूरज की लाली।