पाली नरेश अखैराज सोनगरा
प्रो. देवाराम जॉनसनपुस्तक: पाली नरेश अखैराज सोनगरा
लेखक: विजय नाहर
प्रकाशक: भारतीय इतिहास संकलन योजना, मरूप्रदेश, पाली
मूल्य: ₹100
अखैराज सोनगरा पुस्तक का मुख्य पृष्ठ बड़ा आकर्षक लगा। पुस्तक की बाइंडिंग मज़बूत है। 76 पृष्ठों में संपूर्ण कथावस्तु को सँजोया गया है। पुस्तक की भाषा शैली बड़ी सरल एवं प्रवाहमयी है। पुस्तक की प्रिंटिंग अच्छी है। सामान्य रूप से अखैराज जी सोनगरा के विषय में बहुत कम जानकारी है, उसे इतनी गहराई से तथ्यों के आधार पर चित्रित किया गया है। तत्कालीन मंडोर-मारवाड़ महाराजा राव मालदेव, मेवाड़ महाराणा उदयसिंह एवं बीकानेर महाराजा राव जैतसी को एकजुट कर फिर से राजपूताने की सभी शक्तियों को संगठित करने का प्रयत्न अखैराज ने किया जो उसकी राजनीतिक कुटनीतिज्ञता दर्शाता है। अपनी तीन पुत्रियों का विवाह इन तीनों घरानो में किया। उस काल में राजपूताने की ये तीन ही प्रमुख शक्तियाँ थी। मेवाड़ महाराणा उदय सिंह को पहचान दिलाकर मारवाड़ की सेना के द्वारा बनवीर पर विजय प्राप्त कर पुनः चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठाना अखैराज सोनगरा के जीवन की बड़ी अद्भुत उपलब्धि थी।
अखैराज सोनगरा के परिवार में राष्ट्रभक्ति के संस्कार निर्माण के कार्य को लेखक ने इस पुस्तक में बड़ी गहराई से उकेरा है। उनकी दूसरी पुत्री जयवंती बाई ने महाराणा प्रताप को पाली में जन्म देकर जो संस्कार दिए उसी का परिणाम था कि प्रताप ने जीवन पर्यंत हिंदुत्व एवं भारतीय संस्कृति के लिए अनथक, कठोर एवं निरंतर अभावों में भी संघर्ष की पराकाष्ठा करते हुए मुग़ल बादशाह अकबर को भी झुकने के लिए विवश कर दिया। अखैराज सोनगरा का संपूर्ण ख़ानदान व वंश के सदस्यों ने महाराणा प्रताप के नेतृत्व में अपने सर्वस्व बलिदान दिया। लेखक ने राष्ट्र के लिए किए गए इन बलिदानियों का चित्रण उत्कृष्ट रूप से किया है। राव मालदेव के पलायन करने के पश्चात भी अपने मित्र सेनानायकों के साथ मिलकर दिल्ली सुल्तान शेर शाह सूरी से जिस बहादुरी से संघर्ष किया कि शेरशाह सूरी को बोलना पड़ा “या खुदा! मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिंदुस्तान की बादशाहत खो देता।” इस युद्ध में अखैराज सोनगरा सहित कूपा एवं जेता जैसे सैनापतियों का बलिदान हो गया।
केवल 39 वर्ष की उम्र में इतना बड़ा कार्य अखैराज सोनगरा ने किया जानकार महान आश्चर्य होता है। लेखक ने इसकी मान्यता को बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है। पुस्तक में पुष्टि के लिए पर्याप्त संदर्भ भी दिए गए हैं। लेखक ने अखैराज सोनगरा के चरित्र को न केवल उभारा है बल्कि पाली का नाम भी इतिहास में प्रसिद्ध कर दिया। मैं लेखक को ऐसी कृति के लिए साधुवाद देता हूँ।
पुस्तक समीक्षक
प्रो. देवाराम जॉनसन
व्याख्याता, इतिहास
बांगड़ कॉलेज, पाली