नारी संघर्ष

15-03-2022

नारी संघर्ष

वर्षा भारतीया (अंक: 201, मार्च द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

जब से भू पर खिली हूँ,
इस जग से यूँ मिली हूँ!
सुकवियों ने दिया, 
मेरे जीर्ण हृदय को प्राण,
अवर्णनीय, मुझे बनाया महान!
समाज से यूँ लड़ी हूँ मैं,
अडिग होकर खड़ी हूँ मैं!
बचपन से संघर्ष भरी यात्राएँ 
करती रही हूँ मैं,
ऊँचाई पर चढ़ना सीखी हूँ!
अपने सम्पूर्ण अस्तित्व की पहचान के लिए 
सदा ही आगे बढ़ती रही,
कटे पाँवों और रिसते ज़ख़्मों के साथ
सदा ही चलती रही हूँ मैं!
 

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