मूर्खता
सतीश ’निर्दोष'आज की इस दुनिया में . . .
जहाँ भाई, भाई का नहीं रहा
तुम बिना किसी मतलब के
उनके झगड़े सुलझाने में
अपनों से उलझ जाओ . . .
तो वो कहलाती मूर्खता!
जहाँ हर कोई चाहता है
दूसरे को गिरा के आगे बढ़ना
तुम किसी गिरते हुए को
उठाने को रुक जाओ . . .
तो वो कहलाती मूर्खता!
लोग चाहते हैं कि हों रोशन उनके आँगन
जो लगे पड़ोसी के घर में आग
तुम बिना बुलाये ही उस पड़ोसी के घर
वो आग बुझाने चले जाओ . . .
तो वो कहलाती मूर्खता!
जहाँ मतलब निकल जाने पर
पल में तोड़ लेते हैं रिश्ते
वहा तुम बिना किसी मतलब के
रिश्तेदारी निभाते चले जाओ . . .
तो वो कहलाती मूर्खता!
तो वो कहलाती मूर्खता!!