मोहभंग
अनिलप्रभा कुमार (प्रेम के विभिन्न धरातल)
भावना की चाँदनी में डूबे
हम अपना अक्स देखते रहे
तुम्हारी प्यार में डूबी आँखों में।
फिर जाने क्यों यूँ लगा,
कि जिसे निहार रहे थे
हम बड़ी देर से,
वो परछाईं शायद किसी और की है
हम तो सिर्फ़ तुम्हारी निगाहों की सीध में बैठे हैं।
चाँदनी छलावा भी तो हो सकती है?
हमने जला लिया
असलियत का दिया।
ख़ुद ही प्रश्न-चिन्ह बन कर
तुमसे पूछा एक सवाल।
साध कर सारी रूह को
एक साँस में,
किया इन्तज़ार,
उस जवाब का,
जो हम सुनना नहीं चाहते थे।
तुम उठ खड़े हुए
चाँदनी और लौ के बीच
एक ‘सिल्हुट’ से,
फिर वही सत्य दिखा दिया
जो हम देखना नहीं चाहते थे।
हमने यूँ घबरा के बुझाया दिया
कि अन्धे बने रहने की कोशिश में
दोनों हाथ भी जला लिये हम ने।