मैं  बन गया किनारा

15-06-2021

मैं  बन गया किनारा

साई नलिनी (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

थमने  के  लिए  कहीं  जगह  नहीं  छोड़ता  समंदर
कण  कण  सजा के मैं  बन  गया  सब  का  सहारा
साहिल  का  फ़र्ज़  अदा  करना   ही  पड़ा  था मुझे 
सागर में  डूबती  कश्ती  का मैं  बन  गया  किनारा।
 
लाखों  बार  गोता  लगाती  थी  कश्तियाँ  सागर में 
तूफ़ान की भी साज़िश  थी  उन्हें  बरबाद  करने में 
पलकें उठाने  से  पहले  ही  भँवर में खो जाती थीं 
दर्द देखा उनकी  पुकारों  में, तो बन  गया किनारा। 
 
सोचता था कई उपाय, मैं किसी  का काम आ सकूँ
महीन हूँ  तो  क्या हुआ  अपनी  पहचान बना सकूँ
पहाड़ों से ऊँचे बढ़ने की  हैसियत  कहाँ थी मुझमें 
क़दमों के नीचे मिली जगह, तो  बन गया किनारा।
हाँ  मैं  बन  गया  किनारा,  मैं  बन  गया  किनारा।

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