मौसम की बरसात
आरुषि
क्यूँ ये मन उदास सा रहने लगा है,
अब तो बादलों से भी पानी छलकने लगा है।
अपनापन पाना हर एक हृदय की आस,
ऐ! वर्षा तूने मिटा दी इस धरती की प्यास,
इस नम पल में मैं कैसे हँसूँ,
अब तो पत्ते भी बहा रहे हैं आँसू,
वर्षा के बाद सभी फूल खिल उठे,
लेकिन अभी भी कुछ मन रह गए अनूठे,
इस भीड़ में कहीं खो न जाऊँ,
इस बात का डर है, परन्तु
मेरे आज में ही मेरा कल है,
जानती हूँ कि रास्ता मुश्किल है . . .
अचानक आती है हवा की तेज आवाज़,
वही था एक अलग सा एहसास,
राहें नहीं मिलती बैठे रहने से,
कुछ नहीं होगा सिर्फ़ कहते रहने से . . .
1 टिप्पणियाँ
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'मेरे आज में ही मेरा कल है'...बहुत ही सुन्दर शब्दों से पिरोई हुई कविता। बेटी आरुषि, अपने अंदर बसे रचनाकार को अपने विचारों की लड़ियाँ बस यूँही भेंट करती रहना। शुभकामनाएँ।