मंज़िल मिलेगी क्यों नहीं
कुलदीप पाण्डेय 'आजाद'सिर हार हो या जीत हो,
कोई नहीं भयभीत हो।
कर्तव्य पथ पर हम बढ़ें,
संघर्ष यदि कम हो नहीं।
मंज़िल मिलेगी क्यों नहीं॥
जब लक्ष्य पर ही हो नज़र,
अविरत बढ़ें अपनी डगर।
जीवन समर हर जीत लें,
विश्वास यदि कम हो नहीं।
मंज़िल मिलेगी क्यों नहीं॥
अविराम पथ पर बढ़ रहे,
अवरोध विचलित कर रहे।
तूफ़ान आते देख कर,
भयभीत यदि हम हों नहीं।
मंज़िल मिलेगी क्यों नहीं॥
पथ कंटकों से हो भरा,
चाहे दिखे उपवन हरा।
मौसम सुनहरा देख यदि,
रुकते डगर में हम नहीं।
मंज़िल मिलेगी क्यों नहीं॥
मंज़िल जिसे मिलती वही,
क्या योजना करता सही ?
असफल हुआ राही कभी,
यदि हौसला त्यागे नहीं।
मंज़िल मिलेगी क्यों नहीं॥
सपने बुने हैं जो सभी,
न भाग्य पर छोड़ो कभी।
भाग्य मेहनत है अगर,
यह मान कर चलते कहीं।
मंज़िल मिलेगी क्यों नहीं॥