मैं पाषाण
कमला निखुर्पामोम -सा प्यार
जल उठा पल में
पिघल गया
धुआँते रहे तुम।
बह गई वो
प्रेम की निशानियाँ
तुम कोमल
आहत जब हुए।
मैं तो पाषाण
ज़मीं युगों-युगों से
न बदली थी,
न बदलूँगी कभी।
वर्षों पहले
उकेरे थे तुमने
अंकित हैं वे
प्रेम -निशाँ मन में
साँसों मे जीवन में।