मैं कौन हूँ?
डॉ. कैलाश नाथ खंडेलवाल
मैं कौन हूँ?
कैसे बता दूँ?
अपने आप को अच्छा ही बताऊँगा
बुरा कौन बताता है?
मेरा आकलन
दूसरे ही कर सकते हैं!
परन्तु,
मानव प्रवृत्ति भी बड़ी अजीब है
हमेशा सामने वाला ही
ग़लत दृष्टिगोचर होता है।
पर अपने में झाँकना बड़ी चीज़ है
बड़े बड़े छिद्र दिखाई देते हैं
स्वीकार करना और भी बड़ी चीज़ है
स्वीकारोक्ति महान बनाती है
व्यक्ति मनुष्य होने लगता है
भद्रता, शालीनता का उद्भव होने लगता है
और तभी एहसास होता है
“मैं कौन हूँ?”