मैं भारत हूँ, मैं हारा नहीं
अभिमन्यु कुमार
मैं भारत हूँ, मैं हारा नहीं।
साथ जो वीरों का था, मैं झुका नहीं।
विकट परिस्थितियों में भी पीछे हटे नहीं,
करी शहादत मंज़ूर, रखी जीवन की भी आस नहीं।
ऐसी इच्छा रखने वालों की कमी यहाँ नहीं।
हज़ारों फ़ीट पर भी डटे, हिमालय गवाह बना या नहीं।
बहादुरी का हमारी, अंबर भी मुरीद हुआ या नहीं।
शत्रु भी जिनकी आरज़ू पर फ़ख़्र करते, वो आरज़ू मैं,
मैं भारत हूँ, मैं हारा नहीं।
श्री राम ने शर संधान किया या नहीं।
श्री कृष्ण ने बीच रण उपदेश दिया या नहीं।
माँ काली ने रक्त का प्याला थामा या नहीं।
गुरु गोबिंद सिंह ने सवा लाख से एक लड़वाया या नहीं,
सर्वस्व क़ुर्बान किया या नहीं।
शिवाजी महाराज ने स्वराज का ध्वज उठाया या नहीं।
महाराणा प्रताप ने मेवाड़ का मान बचाया या नहीं।
रानी झाँसी ने गोद में पुत्र लिए शौर्य दिखाया या नहीं।
मंगल पांडे ने पहला क़दम उठाया या नहीं।
बिस्मिल ने क्रांति की मशाल जलाई या नहीं।
चंद्रशेखर आज़ाद को ज़िन्दा कोई बंधक बना सका नहीं।
भगत सिंह ने फाँसी का फँदा चूमा या नहीं,
राजगुरु-सुखदेव ने साथ दिया या नहीं।
हश्र अपना जानकर भी, हर्ष से जान का सौदा किया या नहीं।
मैं भारत हूँ, मैं हारा नहीं।
बलिदानों में हिस्सा लिया बढ़ चढ़ कर,
लुत्फ़ पाया शहादत में खिल-खिलकर,
क्या इतिहास इनके लहू से लिखा नहीं।
मैं भारत हूँ, मैं हारा नहीं।
अपनी हस्ती को तलियों पर रख लिया,
जीवन का अनुराग भी त्याग दिया।
मरते समय होंठों पर लिए केवल हिंद ही हिंद,
काया लथपथ रक्त से, हो गए छिन्द-छिन्द।
यूँ काल की आँखों में आँख डालना सम्भव नहीं,
इन ही बलिदानों का बल था, जो मैं हारा नहीं।
मुझे आबाद रखने को, कितनों ने अपना आप बर्बाद किया नहीं,
मैं भारत हूँ, मैं हारा नहीं।
सुनकर ख़बर शहादत की, चूल्हे की आग भी बुझ गई,
बच्चों की याद ऐसी की माँ दिनों तक रोई।
कौन समझे पिता ने कैसे दी अंतिम विदाई,
ग़ैरों की संत्वना भी कोई काम न आई।
जो कुछ ने मृत्यु वरण करी होती नहीं,
तो शान्ति, समृद्धि, विकास कभी होता नहीं।
मैं भारत हूँ, मैं हारा नहीं।
फ़िदा तो सब हुए,
कुछ ही हैं जो हुए निसार,
मिटने वाले तो मिट के अमर हुए,
फिर कहाँ ढूँढ़ूँ मैं वैसे ऊँचे किरदार।
नेताजी ने जैसा चाहा तुम वैसे अभी बने नहीं।
समय मत व्यर्थ करो, अब ग़लतियाँ करके,
ख़ौफ़ से हो जाओ आज़ाद, अब रहो न डर के,
इस मुक़ाम पर पहुँचे हैं बड़े बलिदानों से,
मैं नाराज़ भले ही कितना तुमसे,
मैं यक़ीन तुम पर ज़रा भी हारा नहीं,
मैं भारत हूँ, मैं हारा नहीं।
लो, एक नई उड़ान, नए सपनों का संकल्प करो,
तक़दीर में लिखी जो फ़तेह उसे हासिल करो।
झुको नहीं, रुको नहीं,
मैं भारत हूँ, मैं हारा नहीं।