माँ

पीयूष श्रीवास्तव (अंक: 220, जनवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

सब ने लिखा बहुत है माँ पर, मैं कुछ लिख न पाऊँ माँ
आज मैं लिखने बैठा हूँ जब, तो कैसे तुझे पढ़ाऊँ माँ
 
समय पड़ा तू सदा खड़ी थी
मेरे लिए तो सबसे अड़ी थी 
तेरी आँखें मुझको तकती
अब मैं तकता जाऊँँ माँ
आज मैं लिखने बैठा हूँ जब, कैसे तुझे बुलाऊँँ माँ
 
कहाँ गयी गुझिया की थाली
ये मठरी सारी किसने खा ली
ऐसे ही भीषण प्रश्नों की ख़ातिर
अब क्यों मैं तरसा जाऊँँ माँ
आज मैं लिखने बैठा हूँ जब, कैसे वो मीठा चुराऊँ माँ
 
घर सूना सा लगता है अब
समय घुना सा लगता है अब
हर दीवाली तूने देखी राहें
अब मैं पलक बिछाऊँ माँ 
आज मैं लिखने बैठा हूँ जब, कैसे तुझे बताऊँ माँ
 
तुझ बिन हर त्यौहार है जाली
ख़ाली सी पूजा की थाली
पढ़ आरती और खा प्रसाद 
छूता था तेरे पाँव माँ
आज मैं लिखने बैठा हूँ जब, कहाँ हैं तेरे पाँव माँ
 
तूने मुझको बहुत सुलाया
तूने मुझको बहुत उठाया
तेरी चिर निद्रा से तुझको
किस तरह से बाहर लाऊँँ माँ
आज मैं लिखने बैठा हूँ जब, कैसे तुझे उठाऊँ माँ
 
कहाँ गया जो बीत गया सब
तेरे बिन तो सीत गया सब
कालचक्र की पकड़ छुड़ा कर
वो समय कहाँ से लाऊँ माँ
आज मैं लिखने बैठा हूँ जब, कैसे तुझे पा जाऊँँ माँ

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