माँ का क़र्ज़ . . . कोई नहीं चुका पाता

15-04-2022

माँ का क़र्ज़ . . . कोई नहीं चुका पाता

दीपाली कालरा (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

एक बार बेटे और माँ में बहस शुरू हो गयी। बेटे ने माँ को कहा, “माँ, तू हमेशा यही कहती रहती है, कि माँ का क़र्ज़ा कभी नहीं उतर सकता। अब मैं तंग आ गया हूँ ये सब सुनकर। आज मैं तेरे अगले पिछले सब क़र्ज़ चुका दूँगा। बता कितना क़र्ज़ा है तेरा? तुझे क्या चाहिए? रुपया, सोना, चाँदी, ज़ेवर? बता माँ ऐसा क्या दूँ, जिससे तेरा क़र्ज़ा उतर जाए।"

माँ ने बेटे को बड़े आराम से कहा, "बेटा, ये रुपये-पैसे, सोने-चाँदी से तो मेरा क़र्ज़ा नहीं उतरेगा। अगर तुझे मेरा क़र्ज़ उतारना है, तो एक काम कर, आज रात तू मेरे पास, मेरे कमरे में सो जा। अगर तू एक रात के लिए मेरे पास सो जाएगा, तो मैं समझूँगी, कि तूने मेरा क़र्ज़ उतार दिया।" 

बेटे ने सोचा, कि सिर्फ़ एक रात की ही तो बात है, सो जाता हूँ—माँ के पास। जैसा तय हुआ था, उस दिन बेटा माँ के कमरे में ही सो गया। 

जैसे ही बेटे को नींद आनी शुरू हुई, माँ ने बेटे को जगा दिया और कहा, "बेटा, प्यास लगी है, एक ग्लास पानी पिला दे।" 

बेटे ने कहा, "ठीक है माँ, अभी लाता हूँ।" 

माँ ने थोड़ा पानी पिया और बाक़ी पानी बिस्तर पर फेंक दिया, जहाँ बेटा सोया था। 

बेटे ने कहा, "अरे, माँ ये क्या किया? तुमने तो मेरी जगह सारी गीली कर दी। अब मैं कैसे सोऊँगा?" 

माँ ने कहा, "बेटा ग़लती हो गयी। कोई बात नहीं सो जा। अभी सूख जाएगा। बस एक रात ही तो सोना है तुझे।" 

बेटा जैसे–तैसे उस गीले बिस्तर पर सो गया। अभी आँख थोड़ा भारी हुई ही थी, कि माँ ने फिर बेटे को जगा दिया और कहा–बेटा पानी पिला दे। 

अब बेटे को थोड़ा ग़ुस्सा आ गया और उसने माँ को कहा, "माँ अभी तो पानी पिया था, इतनी जल्दी प्यास लग गयी?" 

माँ ने कहा, "बेटा गर्मी बहुत ज़्यादा है ना, इसलिए प्यास लग रही है। एक गिलास और पानी पिला दे।" 

बेटे ने थोड़ा मुँह बनाया और पानी का गिलास लेकर आ गया। माँ ने थोड़ा पानी पिया और बाक़ी पानी फिर बेटे की जगह पर गिरा दिया। 

अब बेटे का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। बेटे ने माँ को बहुत अपशब्द कहे। बेटे ने कहा, "माँ तू पागल हो गयी है क्या? तूने मेरी जगह पर पानी गिरा दिया। बार-बार मेरा बिस्तर क्यों गीला कर दिया?"

इस बार बेटे ने दर्जनों बातें सुना दीं अपनी माँ को, लेकिन माँ कुछ ना बोली। 

माँ ने धीमी आवाज़ में कहा, "बूढ़ी हो गयी हूँ ना बेटा, ग़लती से गिर गया। कोई बात नहीं एक रात की बात है। तू सो जा, अभी थोड़ी देर में सूख जाएगा।" 
जैसे–तैसे बेटा फिर गीले बिस्तर पर लेट गया। काफ़ी देर तक नींद नहीं आयी। लेकिन एक घंटे बाद फिर से बेटे की आँखें नींद से भारी होने लगी और तभी माँ ने बेटे को फिर से उठा दिया और कहा, "बेटा पानी . . .!" 

माँ ने अभी इतना कहा ही था, कि बेटा झल्ला उठा और बोला, "भाड़ में जाए तेरा क़र्ज़ा, मैं जा रहा हूँ अपने कमरे में सोने।" 

इतना सुनते ही माँ ने बेटे के गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा मारा और कहा, "तू मेरा क़र्ज़ा उतारने चला था। तू एक बार मेरे कमरे में सो गया और मैंने सिर्फ़ दो बार तेरा बिस्तर गीला कर दिया, तो तू भाग रहा है यहाँ से। 

"मैंने तो तेरा बिस्तर साफ़ पानी से गीला किया, लेकिन जब तू छोटा था, तो मेरा बिस्तर अपने पेशाब और मल से गीला करता था और मैं ख़ुद गीले पर लेटती थी और तुझे सूखे बिस्तर पर लिटाती थी। मैं सारी रात तेरी गन्दगी में सोती थी, लेकिन फिर भी मेरा प्यार, कभी भी तेरे लिए कम नहीं हुआ। 

"मैंने तो सिर्फ़ दो बार पानी माँगा, तो तुझे इतना ग़ुस्सा आ गया। पर जब तू छोटा था, तो रात में कभी पानी, तो कभी दूध माँगता था और मैं हर बार मुस्कुरा कर, अपने हाथो से तुझे पिलाती थी। 

"जब तू रात को बीमार होता था, तो पूरी रात तुझे अपने सीने से लगा कर, आँगन में घूमती थी, ताकि तू सो जाए। 

"और आज तू निकला है, माँ का क़र्ज़ चुकाने। बेटा एक जन्म तो क्या? माँ का क़र्ज़ तू सात जन्मों में भी नहीं उतार सकता।" 

बिलकुल सही है। वाक़ई में माँ का क़र्ज़ कोई नहीं उतार सकता और माँ के महत्त्व का तो तभी आभास होता है, जब कोई ख़ुद माँ–बाप बनता है . . .!! भूल कर भी कभी अपनी माँ से यह मत कहे। 

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