लौट आ ओ धार इक उम्मीद की तरह
दिनेश कुमार पाल
सम्पादकीय टिप्पणी: शमशेर बहादुर सिंह की प्रसिद्ध कविता— लौट आ ओ धार (काव्य संग्रह: टूटी हुई, बिखरी हुई) में बहुत से आलोचकों ने ‘धार’ को पिता की स्मृति या उपस्थिति से जोड़ा है, विशेषकर जब कविता में लौटने की बात होती है। यह सीधा संबोधन नहीं है, लेकिन प्रतीकात्मक रूप से ‘धार’ एक संरक्षक, मार्गदर्शक, या सृजन के स्रोत की ओर संकेत कर सकता है—जो पिता की भूमिका से मेल खाता है। लेखक ने अपने आलेख में उन रचनाओं का उल्लेख किया है जिनमें पिता केन्द्र में है।
—सुमन कुमार घई
पिता का प्रेम किसी परिभाषा एवं शब्दों का विषय नहीं होता, उस का प्रेम शब्दों एवं परिभाषा से परे है। वह परिभाषा की वस्तु नहीं है। पिता हिमालय की तरह विशाल एवं अडिग होता है। पिता के न होने का दंश बच्चों पर बहुत पड़ता है। जिसे शब्दों में बयाँ नहीं कर सकते। ‘लौट आ ओ धार, इक उम्मीद की तरह।’ एक ऐसी उम्मीद जो कभी मरती नहीं। तुम्हारे बिना पूरा का पूरा जीवन अधूरा-सा लगता है। पिता खुला आसमान होता है, जिस में गर्जना, प्रेम, शीतलता एक साथ पिरोया हुआ होता है। पिता का एक स्पर्श हज़ार जड़ी-बूटियों का काम करता है। पिता है तो बच्चों के सारे सपने अपने होते हैं, जिसे वे रात में देखते हैं और दिन में पूरा होता हुआ पाते हैं। पिता में निश्छल प्रेम होता है। उसकी वाणी में सहज, सरल एवं प्रवाहमयता होती है। मानव जीवन का सुन्दर चित्रण सभ्यता और संस्कृति के गर्भ से उत्पन्न होती है, जहाँ मानवीय मूल्यों का क्षरण प्रारंभ हुआ, वहाँ मनुष्य का पतन होना स्वाभाविक होता है। मानवीय संवेदना ही व्यक्ति को समाज, संस्कृति और प्रकृति से जोड़ती है। मानवीय संवेदना और सामाजिक सरोकार से कविता जन्म लेती है। कविता का धर्म ही मनुष्यता को बचाया रखना है।
हिन्दी साहित्य में ऐसा कोई कोना नहीं बचा जहाँ रचनाकारों ने अपनी क़लम न चलाई हो। हिन्दी भाषा के साहित्य में पिता पर बहुत सारी कविताएँ एवं कहानियाँ लिखी जा चुकी हैं और लिखी भी जा रहीं हैं। प्रकृति, कलाओं, संगीत एवं कविता का काम ही रिक्तता को भरना भी होता है। हिन्दी साहित्य में ‘पिता’ कहीं-कहीं आवांछित ज़रूर रहा है, लेकिन अव्यक्त नहीं रहा। ‘पिता’ (ज्ञानरंजन) ‘तिरिछ’ (उदय प्रकाश) ‘वापसी’ (उषा प्रियवंदा) आदि कहानियाँ पिता पर केन्द्रित हैं। चंद्रकांत देवताले का कविता संग्रह ‘जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा’ की कविता ‘प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता’ महेश वर्मा का ‘धूल की जगह’ कविता संग्रह, की ‘कविता पिता बारिश में आयेंगे’ उदय प्रकाश का कविता संग्रह ‘कवि ने कहा’ की कविता ‘पिता’ आदि कविताएँ पिता पर आधारित हैं।
पंकज सुबीर के रूदादे-सफ़र (2023 ई.) उपन्यास का विषय वस्तु पिता और पुत्री का प्रेम एवं देहदान पर आधारित है, तो पंकज सुबीर का ‘उम्मीद की तरह लौटना तुम’ (2025 ई) कविता संग्रह में पिता-पुत्र का अटूट प्रेम का वर्णन किया गया है। पिता अपने बच्चों के लिए पूरी दुनिया होता है। उनका जीवन से चले जाना, एक पुत्र को अकेलेपन के बोझ से भर देता है। अकेलेपन और थकान से उपजा पंकज सुबीर का यह नया कविता-संग्रह है। जिनमें सिर्फ़ एक पिता ही नहीं, बल्कि एक पूरी दुनिया समाई हुई है। इस कविता संग्रह में पंकज सुबीर अपने पिता के चले जाने के बाद ख़ालीपन और अवसाद को ‘मौन की भाषा’ की सहायता से चुप्पी को तोड़ने की कोशिश की है।
पंकज सुबीर की भाषा का तेवर गद्य और पद्य दोनों में एक सामान रूप से देखने को मिलता है। स्मृतियों की भी एक उम्मीद होती है, बार बार लौट आने की। इस कविता संग्रह की कविताओं की संवेदना की गहराई को किताब की भूमिका से समझा जा सकता है , “मैंने क़लम को उठाया और यूँ ही कुछ लिखना शुरू किया, जो लिखा जा रहा था वह एक कविता जैसा था—पिता-तीन दिन बीत गये'। इस किताब में सात कविताएँ: 'रबाब-एक मुसलसल इश्क़’, ‘गौतम राजऋषि के लिए’, ‘लिफ़ाफ़ा’, ‘ताना-बाना’, ‘तुम’, ‘पीली और उदास आँखें’ तथा ‘विश्वास’ मेरी पुरानी कविताएँ हैं।”
पिता की यादें फ़िल्मी चलचित्र की तरह एक-एक करके आती रहीं और वे यादें कविता का रूप लेती चली गईं। जिसमें लम्बे समय के सफ़र को सँजोया गया है। स्मृति रूपी पुष्प का एक गुलदस्ता तैयार किया है, जिस की सुगंध पाठकों तक कविता के माध्यम से पहुँच रही है। रचनाएँ अनुभूतियों का प्रतिबिम्ब होती हैं, और अनुभूतियों से ही रचनाओं का जन्म होता है। ‘उम्मीद की तरह लौटना तुम’ कविता संग्रह में पंकज सुबीर प्रेम को सिर्फ़ रचते ही नहीं, बल्कि उसे जीते भी हैं।
एक ख़ला है, बस उम्मीद है लौट आने की, इस बार जब लौटो तो उम्मीद की तरह लौटना तुम, इंतज़ार, इंतज़ार, इंतज़ार . . .!
शोध छात्र
आधुनिक हिन्दी एवं भारतीय भाषा विभाग
इलाहाबाद, विश्वविद्यालय, प्रयागराज