क्या तुम सहमत हो?
डॉ. नरेन्द्र ग्रोवर आनंद ’मुसाफ़िर’
मुझे तो लगता है
क्या तुम सहमत हो?
पूर्वज हमारे हमसे अधिक
स्वाभिमानी थे
पुरुषार्थी थे शत्रु बोध
में ज्ञानी थे
प्रताप, शिवाजी की
बलिदानी भूल गए हम
जीवन और स्वतंत्रता
ऋण है उनका भूल गए हम
मुझे तो लगता है
क्या तुम सहमत हो?
प्राण लहू से सिंचित धरती
सौंप गए
फाँसी पर दी जान
वतन को सौंप गए
एक अँधेरी रात
बँटने दिया स्वार्थ की ख़ातिर
बैठाये, पाले, पोषित किये
दुश्मन बाहर, दुश्मन अंदर
फिर पाठ पढ़ाया
भाई चारे का, सहनशीलता का
कटने दिया सिर्फ़ हिन्दू
जात को
पर शत्रु को भरसक उकसाया
Socialism और Secularism
कोने से ला कर चिपकाया
मुझे तो लगता है
क्या तुम सहमत हो?
साफ़ और सपष्ट है उनके इरादे
चलायमान करते
बहत्तर हूरों के वादे
हम धूमिल आशाओं और
कायरता को पहनाएँ सहिष्णुता
के लबादे
मुझे तो लगता है
क्या तुम सहमत हो?
गर तुम सहमत हो
ध्वजा उठाओ
शस्त्र सँभालो
भीड़तंत्र की ताक़त
मंदिर से हर मंगलवार
निकालो
जुम्मे को मंगल से
टकरा लो
छोड़ बाँसुरी सुदर्शन चक्र
उठा लो
मुझे तो लगता है
क्या तुम सहमत हो?