कुछ एहसास
कमला घटऔरा(कुछ छोटी कविताएँ)
1.
ज़िन्दगी धूप ही धूप थी
तुमने थामा जो हाथ
छतरी बन शीतल छाँव
लगा, चलने लगी साथ।
2.
पथ था उबड़ खाबड़
पता न चला
कब ले गया पर्वत पार
राह दिखाता कंटक हटाता
तेरा एहसास या ख़ुद
तुम्हीं थे साथ।
3.
की थी मनुहार तुमसे
साथ चलने की कभी
मगर सुनी न गई तो
चल पड़े अकेले ही
क्योंकि, धरा पर
आये भी तो अकेले ही थे।
4.
छूने की चाह ऊँचाइयों को
भले कभी पूरी हो न हो
मलाल न करो, कोशिश नहीं की
चल पड़ो जो संकल्प ले
पग बढ़ते जायेंगे, देखना
अपने आप मंज़िल की ओर।